गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

क्या बेहतर है - विवरणात्मक व्याकरण या निर्देशात्मक व्याकरण?

भाषाई प्रयोगों का विवरण मात्र देकर सही-ग़लत प्रयोग पर अंतिम राय नहीं देने वाले व्याकरण को विवरणात्मक कहा जाता है, जबकि नियमों के पालन पर ज़ोर देने वाला व्याकरण निर्देशात्मक कहलाता है। हाल के दशकों में अंग्रेज़ी में विवरणात्मक व्याकरण को अधिक महत्वपूर्ण मानने वाले वैयाकरणों, लेखकों आदि की संख्या बढ़ी है। हिंदी में कुछ अपवादों को छोड़कर निर्देशात्मक व्याकरण को ही महत्वपूर्ण मानने की परंपरा रही है।

किसी नियम को दशकों पुरानी किताब के आधार पर सही-ग़लत मानने वाले लोग तमाम भाषाओं में मौजूद हैं। ऐसे लोग असल में भाषाई अंधविश्‍वास के समर्थक होते हैं। अगर अंग्रेज़ी में विलियम स्ट्रंक जूनियर की 1918 में लिखी शैली मार्गदर्शिका के नियमों को अपने विद्यार्थियों पर लादने वाले कुछ शिक्षक मौजूद हैं तो हिंदी में भी कामताप्रसाद गुरु की 1920 में लिखी किताब के नियमों को पत्थर की लकीर मानने वाले लोगों की कमी नहीं है। सच तो यह है कि समय के साथ बहुत-से नियम अपनी प्रासंगिकता खो बैठते हैं, लेकिन इस सच से मुँह चुराने वाले लोग हर प्रमाण की अनदेखी कर देते हैं। कभी-कभार निर्देशात्मक व्याकरण के नियमों के आधार पर की गई आलोचना में वर्गीय अहंकार भी दिखता है।

निर्देशात्मक व्याकरण के प्रति नकारात्मक धारणा बनाने में क्वींस इंग्लिश सोसाइटी जैसी संस्था की बहुत बड़ी भूमिका रही है। चाहे वाक्य के अंत में पूर्वसर्ग (प्रेपोज़िशन) के प्रयोग की निंदा हो या 'चेयरपर्सन' जैसे लिंग-निरपेक्ष शब्द के प्रयोग पर आपत्ति, ऐसी आलोचनाएँ भाषा के स्वाभाविक विकास में बाधक ही बनती हैं। लेकिन कट्टर नियमवादी इन आपत्तियों को सही ठहराने पर अच्छा-ख़ासा समय बर्बाद कर देते हैं और क्वींस इंग्लिश सोसाइटी में ऐसे विद्वानों की कमी नहीं है।

कोश भी विवरणात्मक या निर्देशात्मक होते हैं। विवरणात्मक शब्दकोशों में 1961 में प्रकाशित वेब्सटर्स थर्ड न्यू इंटरनेशनल डिक्शनरी का विशेष स्थान है। जब इस शब्दकोश में एन्ट (ain't) को शामिल किया गया तो अंग्रेज़ी जगत में ऐसे शब्दों को शब्दकोश में जगह देने को सभ्यता के विनाश का उदाहरण बताया गया! बाद में इस विषय पर एक किताब भी लिखी गई। इस शब्दकोश की चौतरफ़ा आलोचना के बाद 1969 में दि अमेरिकन हेरिटेज डिक्शनरी ऑफ़ दि इंग्लिश लैंग्वेज नाम का निर्देशात्मक शब्दकोश प्रकाशित हुआ, जिसमें तमाम विवादास्पद वर्तनियों को हटा दिया गया था। इंटरनेट के इस ज़माने में शब्दकोशों में जगह की सीमा के कारण शब्दों को छोड़ देने की कोई मजबूरी नहीं रह गई है। यही वजह है कि ऑनलाइन शब्दकोश के मामले में 'संक्षिप्त' और 'बृहत' जैसे शब्द अप्रासंगिक हो गए हैं। हमें इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि वर्तनी से जुड़े मसलों पर हमेशा अंतिम राय देना संभव नहीं होता है। यही वजह है कि हम वर्तनी के लिए किसी एक शब्दकोश पर निर्भर नहीं हो सकते हैं। इस बात को 'अक्टूबर' शब्द के संदर्भ में समझा जा सकता है। जहाँ हिंदी में अंग्रेज़ी भाषा के उच्चारण को सही ढंग से लिखने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए 'अ‍क्टूबर' को सही माना जा सकता है, वहीं बहुत-से लोग मानक हिंदी वर्तनी की कुछ किताबें दिखाकर 'अक्‍तूबर' को सही साबित करने की कोशिश करेंगे। ऐसी स्थिति में इन दोनों प्रयोगों में से किसी एक को सही मानने का नियम बनाकर उसका पालन करने का ही विकल्प बचता है। आने वाले समय में जब 'अक्‍टूबर' को ही मानक वर्तनी मान लिया जाएगा तब इस समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता, इससे संबंधित नियमों में से किसी एक का पालन करके एकरूपता सुनिश्‍चित करना ही बेहतर विकल्प है।

अब एक सवाल यह उठता है कि क्या नियमों के पालन के मामले में बहुत उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने वाले इस दौर में निर्देशात्मक व्याकरण की कोई प्रासंगिकता बची है। इसका जवाब यह है कि हमें संतुलित निर्देशात्मक व्याकरण और असंतुलित निर्देशात्मक व्याकरण में अंतर करना होगा। किसी किताब, आलेख या वेबसाइट में एकरूपता और स्पष्टता सुनिश्‍चित करने के लिए कुछ नियमों की ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी। यहीं हमें संतुलित निर्देशात्मक व्याकरण का महत्व समझ में आता है। जहाँ अप्रासंगिक नियमों पर ज़ोर देने वाले असंतुलित निर्देशात्मक व्याकरण से अनावश्यक विवाद पैदा होता है, वहीं भाषाई प्रयोगों में से बेहतर विकल्पों को चुनकर एकरूपता और स्पष्टता सुनिश्‍चित करने की ज़िम्मेदारी नहीं लेने वाले विवरणात्मक व्याकरण की सार्थकता पर भी सवाल खड़ा किया जा सकता है। यही वजह है कि मैं संतुलित निर्देशात्मक व्याकरण का पक्षधर हूँ।