रविवार, 24 फ़रवरी 2013

अनुवादक संघ की दूसरी बैठक

अनुवादक संघ की दूसरी बैठक नौ फ़रवरी, 2013 को प्रगति मैदान में दोपहर दो बजे से लेकर शाम पाँच बजे तक आयोजित की गई। इस बैठक में अनुवाद की स्तरीयता, अनुवाद दर और अनुवादक संघ की योजनाओं पर चर्चा हुई।

अनुवाद की स्तरीयता

स्तरहीन अनुवाद के कारण पाठक अनूदित किताबों से दूर रहने लगे हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि पाठक पचास-साठ पेज पढ़ने के बाद अनुवाद की स्तरहीनता से चिढ़कर अंग्रेज़ी में ही किताब पढ़ने का मन बना लेते हैं। अगर इस स्थिति में बदलाव नहीं आया तो भारतीय भाषाएँ दूसरी भाषाओं की वैचारिक संपदा से वंचित रह जाएँगी।

अनूदित किताबों की स्तरीयता का मामला केवल अनुवादकों के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। इसका असर पूरे समाज पर पड़ता है। ऐसा नहीं है कि हिंदी में अच्छे अनुवादक नहीं हैं। समस्या यह है कि प्रकाशक मुनाफ़ा कमाने के लिए अनुवादकों को पर्याप्त पारिश्रमिक नहीं देते हैं। हमें कम समय में अच्छा अनुवाद चाहने वाले प्रकाशकों को भाषा और अनुवाद की जटिलता के बारे में बताना होगा। असंपादित अनुवाद का प्रकाशन भी हमारी चिंता का विषय है। संपादन नहीं होने के कारण ही हमें 'nature's call' का 'प्रकृति की पुकार' जैसा हास्यास्पद अनुवाद देखने को मिलता है। स्तरीयता के मामले में प्रकाशकों की लापरवाही के कारण बहुत-से अनुवादक इस जटिल बौद्धिक काम को केवल शारीरिक श्रम के रूप में करने पर मजबूर हो गए हैं। कम से कम समय में अधिक से अधिक शब्दों के 'उत्पादन' को अनुवाद मानने-मनवाने की प्रवृत्ति से न तो अनुवादकों का भला होगा न प्रकाशकों का। इस प्रवृत्ति से उन पेशेवर अनुवादकों को भी समस्या का सामना करना पड़ता है जो अपनी रुचि के पाठ का मन लगाकर अनुवाद करना चाहते हैं।

 भारत में ऐतिहासिक कारणों से अनुवाद का विशेष महत्व रहा है। वैचारिक पिछड़ापन दूर करने में अनूदित किताबों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अगर दूसरी भाषाओं की स्तरीय किताबें कम कीमत पर पाठकों को उपलब्ध कराई जाएँ तो इससे नई पीढ़ी को सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूक बनाने और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान से जुड़े रहने के लिए प्रेरित करने में मदद मिलेगी।

हमें अनुवादक संघ के ब्लॉग पर अनूदित किताबों की समीक्षाएँ लिखनी चाहिए। इससे अनुवाद की स्तरीयता के प्रति जागरूकता पैदा करने में मदद मिलेगी। विदेशी प्रकाशकों को उनकी किताबों के स्तरहीन अनुवाद के बारे में बताना भी एक अच्छा कदम हो सकता है।

अनुवाद दर

इंटरनेट के माध्यम से विभिन्न एजेंसियों या क्लाइंटों के लिए काम करने वाले अनुवादकों में इस बात पर सहमति बन गई है कि न्यूनतम अनुवाद दर एक रुपया प्रति शब्द होनी चाहिए, लेकिन प्रकाशकों के लिए काम करने वाले अनुवादकों को इस दर पर काम नहीं मिल पाता है। अगर समाज में स्तरीय अनुवाद के प्रति जागरूकता पैदा हो जाए तो इस स्थिति में सकारात्मक बदलाव की आशा की जा सकती है। प्रकाशकों को अनुवाद का महत्व देखते हुए पारिश्रमिक बढ़ाने के संदर्भ में उचित कदम उठाने चाहिए। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो अंतत: उन्हें ही इसका नुकसान उठाना पड़ेगा।

सरकारी विभागों में न्यूनतम अनुवाद दर तय करना ज़रूरी हो गया है। सरकार के स्तर पर अभी तक ऐसा नहीं किया जाना आश्‍चर्यजनक है।

योजनाएँ 

हमें अनुवादक संघ की वेबसाइट के लिए धनराशि जुटानी होगी। अनुवादक संघ के ब्लॉग पर भाषा और अनुवाद से संबंधित स्तरीय सामग्री उपलब्ध कराना हम सभी की ज़िम्मेदारी है। कुछ अनुवादकों ने अनुवादक संघ के ब्लॉग के लिए नियमित लेखन का आश्‍वासन दिया है। अनुवादक संघ की गतिविधियाँ बढ़ने पर अनुवाद कार्यशाला का भी आयोजन किया जा सकता है। हम अनुवाद से संबंधित पत्रिका के प्रकाशन पर भी विचार कर सकते हैं। अनुवादक संघ की बैठकें कम अंतराल पर आयोजित की जानी चाहिए।

बैठक में उपस्थित सदस्य

1. दिगंबर
2. भावना मिश्रा
3. शिवानी खरे
4. रश्‍मि सहारे
5. आनंद
6. अजय
7. प्रवीण
8. सत्यानंद निरुपम
9. प्रभात रंजन
10. अविनाश कुमार आनंद
11. दीपाली सांगवान
12. अरुण कुमार
13. प्रकाश शर्मा
14. आलोक गुप्त
15. प्रमोद कुमार तिवारी
16. दीपक चन्द्र
17. त्रिपुरारि कुमार शर्मा
18. राकेश श्रीवास्तव
19. सुयश सुप्रभ