मंगलवार, 12 मार्च 2013

अनुवाद एक कला और व्‍यवसाय


अनुवाद अर्थात किसी एक भाषा के विचार अथवा पाठ को दूसरी भाषा में व्‍यक्‍त करना। अनुवाद का काम एक आदमी को देखने में जितना आसान लगता है, उतना ही वो तब मुश्‍किल हो जाता है जब वो उसे खुद करने बैठता है।

हरेक स्‍नातक जो दो भाषाओं का ज्ञान रखता है, उसे ये ग़लतफ़हमी होती है वो अनुवाद कार्य भी आसानी से कर लेगा। लेकिन स्रोत भाषा को लक्ष्‍य भाषा में बदलने का ये खेल इतना आसान नहीं है। इसे खेल न कहकर एक कला कहा जाए तो कुछ ग़लत न होगा। जहां अच्‍छे अनुवादक के लिए अनुवाद कार्य एक खेल के समान होता है वहीं उसके पाठक के लिए उसकी खूबसूरती एक कला का रूप धारण कर लेती है। अजंता एलोरा की गुफ़ाओं की मूर्तियों के रचनाकार को शायद अंदाज़ा भी न होगा कि उसे उसकी कला के ज़रिए अनंत काल तक याद किया जाता रहेगा। इसी तरह से बेहतरीन अनुवाद भी कुछ ऐसी ही अमिट छाप छोड़ता है।

साहित्‍य, शिक्षण, अनुवाद आदि ये कुछ कार्य ऐसे हैं जिसे लोग केवल सामाजिक और नैतिक कार्य समझने की भूल कर बैठते हैं या कहें एक चोला ओढ़ा देते हैं। आज के आधुनिक युग में हालांकि यह भ्रांति समाप्‍त होती जा रही है क्‍योंकि बेहतरीन शिक्षक भी आज पैसे का महत्‍व जानता है और शिक्षण के पेशे को जब वो विशुद्ध व्‍यावसायिक रूप से करने लगता है तो अपने क्षेत्र में सफलता के एक ध्‍वज का वाहक सा दिखता है। जिस शिक्षक को निजी विद्यालय के कर्ता-धर्ताओं की सात-आठ हज़ार रूपए तनख्‍वाह देते हुए जान निकलती है, जब वही शिक्षक एक कोचिंग संस्‍थान खोल कर कमाने लगता है तो उसकी वही आय चालीस पचास हज़ार को भी पार कर जाती है, जिससे उसके रहन-सहन का स्‍तर भी बढ़िया हो जाता है।

अनुवाद क्षेत्र की भी एक यही खामी है कि कुछ श्रेष्‍ठ अनुवादक एक हीन ग्रंथि से घिरे रहते हैं। सरकारी दर यदि चालीस-पचास पैसे प्रति दर है तो वे ये समझने की भूल कर बैठते हैं कि इससे ज्‍़यादा पैसे उन्‍हें देने की ज़हमत कोई नहीं उठाएगा। जबकि वहीं सफल अनुवादक अपनी दरों से समझौता किए बगैर अनुवाद क्षेत्र को एक विशुद्ध व्‍यवसायी की तरह  तरक्‍की की राह दिखाते रहते हैं, नित नए प्रतिमान गढ़ते रहते हैं। जहां उनकी दरें सम्‍मानजनक होती हैं वहीं वो स्‍वयं को अनुवाद के सभी आधुनिक उपकरणों से स्‍वयं को लैस रखते हैं। चाहे वो ट्रैडोस हो, या मेमोक्‍यू, वर्डफ़ास्‍ट हो या कोई और। कम समय में बेहतरीन काम करने की मंशा उन्‍हें अपनी और इस पेशे की तरक्‍की के कई बेहतरीन अवसर देती है जिसे वे सफलतापूर्वक भुनाते हैं और बाकियों के लिए एक मिसाल कायम कर देते हैं।

अनुवाद भाषा के साथ जुड़ा व्‍यवसाय है। अपनी हिंदी भाषा के संदर्भ में कहूं, जब अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद की बात आती है तो यह बेहद जटिल काम हो जाता है। पहला कारण यह है कि हर कोई जो हिंदी भाषा का थोड़ा-बहुत ज्ञान रखता है, वो अनुवाद में मीन-मेख निकालने से नहीं चूकता। ये शायद हम भारतीयों की आदतों में शुमार है और दूसरों की गलतियां निकालने में हम माहिर उस्‍ताद हैं। ओह, लगता है जैसे भड़ास निकाल रहा हूं! :))

ख़ैर, आधुनिक संदर्भ में तो मैं यही कहूंगा कि इक्‍कीसवीं सदी के पहले दशक में उदारीकरण के दौर ने अनुवाद के व्‍यवसाय को भी नई मंज़िलें दी हैं, नए विचार दिए हैं, अंतरराष्‍ट्रीय बाज़ार दिया है। ये बाज़ार ऐसा है जिसमें अनुवाद एक उत्‍पाद है और उसकी गुणवत्ता जितनी बेहतरीन होगी, उसकी मांग भी उतनी ही ज्‍़यादा बनी रहेगी।

यदि अनुवादक के अनुवाद की गुणवत्ता अच्‍छी है, भाषा पर पकड़ बढ़िया है, तो उसे अपनी दरों को सदा ऊंचा रखना चाहिए क्‍योंकि गुणवत्तायुक्‍त उत्‍पाद बाज़ार से हमेशा अच्‍छी कीमत पाने का अधिकारी होता है। दीगर रहे कि अनुवादक चाहे नया हो या पुराना, उसे अपनी गुणवत्ता का ज्ञान हमेशा रहना चाहिए और यदि उसे लगता है कि उसका काम इतना गुणवत्तापूर्ण है कि वह बाज़ार की मांग और भूख को पूरा कर सकता है, तो उसे अपने काम की दरें अन्‍य सामान्‍य अनुवादकों से हमेशा ज्‍़यादा ही रखनी चाहिए। एक कहावत है ना, 'महंगा रोए एक बार, सस्‍ता रोए बार-बार'। जिन्‍हें कामचलाऊ काम चाहिए, उन्‍हें सस्‍ती दरों वाले अनवुादकों की ओर जाने दें, लेकिन अगर आप बेहतरीन काम करते हैं तो ऐसे उपभोक्‍ता देखें जिन्‍हें बढ़िया काम की तलाश हो और उसके लिए वे वाजिब और अच्‍छे दाम देने में हील-हुज्‍जत न दिखाएं। अब फ़ाइव-स्‍टार होटलों की ही बात करें, तो एक ग्राहक जो शायद एक सड़कछाप ढाबे पर ज्‍़यादा पैसे की मांग पर आंखें तरेर सकता है, वहीं ग्राहक जब ऐसे फ़ाइव-स्‍टार होटलों पर पहुंचता है तो वो न केवल ज्‍़यादा पैसे देता है, बल्‍कि वेटर को टिप देने में भी ना-नुकुर नहीं करता। क्‍योंकि वहां इज्‍जत का सवाल होता है। अनुवाद के विदेशी उपभोक्‍ताओं में तो ये भावना फिर भी दिख जाती है, लेकिन अपने देशी उपभोक्‍ता यानी एजेंसियां अनुवादक को कम दरों पर काम करवाने में सफल होने पर यूं खुशी ज़ाहिर करती हैं मानो कोई किला फ़तह कर लिया हो। यानी एक तो अनवुाद के बाज़ार को ठंडा करने की कोशिश, यानी चोरी और तिस पर सीना ज़ोरी।

जैसा कि मैं पहले भी ज़िक्र कर चुका हूं कि कुछ अनुवादक न केवल अनुवाद के स्‍तर पर बल्‍कि पेशे के स्‍तर पर भी अनुवाद कार्य को भारतीय समाज में सम्‍मानजनक दर्जा दिलाने की भरपूर कोशिश में लगे हुए हैं। मेरे एक ऐसे ही मित्र हैं जो स्‍वयं अनुवादक होने के साथ-साथ, एक प्रगतिशील विचारक भी हैं। वे फ़ेसबुक के माध्‍यम से जहां प्रगतिशील विचारों को अपनी मित्र-मंडली और समूह तक पहुंचाते रहते हैं वहीं उन्‍होंने गूगल समूह का बढिया इस्तेमाल करते हुए अनुवाद क्षेत्र की हितैषी ऑनलाइन दुनिया को भी गढ़ा है। वे उस आभासी दुनिया को सार्थक रूप में देने में पूरे जी-जान से जुटे हुए हैं। उनकी ही सलाह थी कि हम अनुवादक कुछ ब्‍लॉग्‍स लिखें, जिसने मुझे ब्‍लॉग लिखने के लिए फिर से प्रोत्‍साहित किया था।

हो सकता है, आगे भी कुछ प्रेरक ब्‍लॉग्‍स लिखने का प्रयास करूं, जिसके लिए मुझे अपने मित्रों और वरिष्‍ठों के मार्गदर्शन की आवश्‍यकता रहेगी।

आपका सहृदयी मित्र,
प्रकाश शर्मा
अंग्रेज़ी-हिंदी/नेपाली/संस्‍कृत-अंग्रेजी अनुवादक
http://www.proz.com/profile/45193

आप प्रकाश शर्मा का ब्लॉग यहाँ देख सकते हैं।