बुधवार, 23 जून 2021

अनुवाद – अर्थ और अनर्थ के बीच

अनर्थ हो गया है अर्थ की अभ्यर्थना में,

मनुष्य खो गया है मनुष्य की जल्पना में। 

केदारनाथ अग्रवाल की इन पंक्तियों की सच्चाई बतौर अनुवादक भले ही सभी आसानी से समझें या न समझें, लेकिन समस्या का शुभारंभ तो तभी हो जाता है जब दो भाषाओं का ज्ञाता यह मान बैठे कि वह बड़ी आसानी से अनुवादक बन सकता है। उसे शब्दकोश के सहारे केवल एक भाषा में लिखे शब्दों को दूसरी भाषा में उसी अर्थ वाले शब्द से बदलना ही तो है। लेकिन किसी ने ख़ूब कही कि यह वैसा ही है जैसे दस उँगलियों का होना हमें पियानो बजाने में माहिर बना दे।

अनुवाद कार्य से जुड़ा हर व्यक्ति जानता है कि यह कोई सरल-सुगम प्रक्रिया नहीं है। यहाँ तक कि डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960 में लिखे अपने पत्र में भारत के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी कहते हैं - “Translation is a difficult art. It is more difficult than original writing in any language… A perfect translation is that which reproduces the sense of every expression of the original with due emphasis on spirit, as distinguished from mere words, which require it.” (अनुवाद एक श्रम-साध्य कला है, जो किसी भी भाषा में मौलिक लेखन की अपेक्षा अधिक कठिन है... बेहतरीन अनुवाद वह है जो शाब्दिक न होकर प्रत्येक मूल भावना को, मूल लेख के प्रत्येक कथ्य पर समुचित ज़ोर देते हुए व्यक्त करे।)

आगे अपने अभिभाषणों के अनुवाद की जटिलता का ज़िक्र करते हुए वे लिखते हैं -

“…I believe that rather the reproduction of a word for a word or a phrase for a phrase is not the true test of translation. We know from our experience how difficult and exciting the work is. …It is not so much the difficulty of translation as of the ideas contained and conveyed by one writing to be rendered into another. Have we not experienced all these in the translation of the address?” (मेरा मानना है कि अनुवाद की वास्तविक कसौटी शब्दशः या वाक्यशः अनुवाद करना नहीं है। हम अपने अनुभव से जानते हैं कि यह कार्य कितना कठिन है और रोचक भी।... कठिनाई अनुवाद की नहीं, बल्कि एक भाषा के विचारों को दूसरी भाषा में अनूदित करने की है। क्या हमने अभिभाषणों का अनुवाद करते समय इन जटिलताओं का अनुभव नहीं किया है?)

अनुवाद प्रक्रिया की शुरुआत होती है दिए गए पाठ के विश्लेषण से। यहाँ हम जिन चुनौतियों का सामना करते हैं, वे हैं मूल विषय से संबंधित ज्ञान का अभाव और लक्ष्य भाषा में उसके अनुवाद की जटिलता। अगर हम शब्द-संग्रहों का सहारा लें, तो उनमें कई बार एक शब्द के लिए कई अर्थ मिल जाते हैं। जैसे Talent is one of our key differentiators’ वाक्य में differentiator के लिए शब्द हैं 'अवकलक', 'विभेदक', 'दूसरों से अलग'। अगर विषय गणित से संबंधित है और अनुवादक 'अवकलक' शब्द को चुन ले, तो यह सही है। लेकिन अकसर हम ख़ुद को अच्छा लगने वाला या भारी-भरकम पर्याय लेकर आगे बढ़ जाते हैं, जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है।

ग़लत अनुवाद के उदाहरणों में इन पर भी नज़र डालें। अंग्रेज़ी में जब कहा जाता है कि पुलिस ने 'इतने round गोलियाँ चलाईं', तो आम तौर पर 'इतने चक्र गोलियाँ चलाईं' लिखा जाता है, जो अटपटा भी है और ग़लत भी। जबकि एक round का मतलब है 'एक गोली'यही स्थिति 'जजमेंट रिज़र्व' रखने को लेकर है। अकसर कहा या लिखा जाता है -- ‘न्यायाधीश ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा’। आजकल ख़बरों में इसका इतना ज़्यादा प्रचलन है कि पहली नज़र में यह हमें सही लग सकता है। लेकिन ज़रा सोचें, जब न्यायाधीश कहता है कि उसने अपना ‘जजमेंट रिज़र्व’ रखा है तो इसका मतलब यह नहीं होता कि फ़ैसला लिखकर कहीं सुरक्षित रख दिया है। दरअसल बात निर्णय बाद में लिखने और सुनाए जाने की है। अगर नेट पर थोड़ी छानबीन कर लें तो स्पष्ट हो जाएगा कि reserved judgments वे हैं जो आम तौर पर जटिल होते हैं और जिन पर विचार-विमर्श के लिए न्यायाधीश को और समय चाहिए।

अनुवाद प्रक्रिया का दूसरा चरण है मूल पाठ के भाव का लक्ष्य भाषा में अंतरण। यहाँ हमें शब्दकोश, थिसॉरस और अन्य सहायक सामग्री से मदद मिलती है। लेकिन यहाँ भी समतुल्य शब्द की कमी चुनौती बनकर उभरती है। कई ऐसे भी उदाहरण आपको शब्द-संग्रहों में मिल जाएँगे जहाँ दो या तीन शब्दों का एक ही हिंदी पर्याय दिया गया हो। लेकिन जब मिलते-जुलते अर्थ वाले शब्द एक ही वाक्य में एक साथ आ जाते हैं, तो स्थिति और भी विकट हो जाती है। उदाहरण के लिए, ‘We must make a distinction between gender and sex’ वाक्य में sex और gender शब्द पर ग़ौर करें, जहाँ शब्दकोश में दोनों के लिए 'लिंग' पर्याय दिया गया है। ऐसे में अनुवादक के लिए ज़रूरी हो जाता है कि वह लिंग के अलावा कोई और पर्याय खोजे, क्योंकि sex जहाँ स्त्री-पुरुष का भेद स्पष्ट करता है वहीं gender लैंगिक पहचान को।

समृद्ध शब्दावली अनुवाद में चार चाँद लगाती है, लेकिन कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनका अनुवाद काफ़ी मुश्किल हो जाता है। जैसे, awkward के लिए हिंदी में सटीक शब्द नहीं है। हालाँकि 'ख़राब' जैसे शब्द से काम चला लिया जाता है, लेकिन मूल शब्द सामाजिक परिस्थितियों में शर्मिंदगी और असहजता के मिश्रित भाव की अभिव्यक्ति है।

इसी प्रसंग में पूर्ण स्वराज शब्द को लेकर महात्मा गाँधी की एक लेखक से बातचीत का यह अंश भी विचारणीय है –

“I cannot give you a proper answer as there is nothing in English language to give the exact equivalent of Poorna Swaraj. The original meaning means ‘self-rule’, independence has no such meaning about it. Swaraj means disciplined rule from within, Poorna means complete. Not finding any equivalent we have loosely adopted the word complete independence which everybody understands.”

भाषा को बोझिल होने से बचाने, उसमें रवानगी लाने के लिए आम शब्दों का प्रयोग कभी सायास तो कभी अनायास हो जाता है। प्रवाहमान भाषा में पुराने शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं, वे नए रूप और नए अर्थ धारण कर लेते हैं। अनुवाद की शुद्धता के लिए इन परिवर्तनों का ज्ञान भी आवश्यक है। जैसे, नशे के अर्थ में पहले प्रयुक्त dope अब cool या awesome के लिए प्रयुक्त होने लगा है, और salty अब नमकीन नहीं रह गया है बल्कि bitter, angry, agitated बन गया है। अब कोई आपको sic/sick कहे तो आप ख़ुश हो जाइए, क्योंकि आप बीमार नहीं बल्कि cool या sweet हैं।

नित नए गढ़े जाने वाले शब्दों की चर्चा के दौरान आजकल हिंदी में भ्रष्टाचार कांड से जुड़ी हर घटना के लिए प्रयुक्त gate शब्द को भी देखें (जैसे कोलगेट) जो अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करने वाले वॉटरगेट प्रकरण के बाद बनने वाला नया प्रत्यय है।

अनुवाद का तीसरा चरण है पुनःसंरचना संपादन के इस चरण में यह तय करना पड़ता है कि किस समतुल्य शब्द का प्रयोग करना है या किस शैली को अपनाना है। मूल पाठ में रचयिता साधारण शब्द को भी अपने प्रयोग-कौशल से असाधारण, नए और विशिष्ट अर्थ देने में समर्थ होता है। वह भले ही अज्ञेय की तरह शब्द निरपेक्ष होकर कहे - "तुम मुझे शब्द दो, न दो फिर भी मैं कहूँगा", अनुवादक यह नहीं कह सकता। उसे अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की – विशिष्ट शब्दों की आवश्यकता होती है।

सहज अनुवाद के लिए उसके पास मुहावरेदार अभिव्यक्ति का होना भी ज़रूरी है। It is a big deal में अगर आप 'सौदे' की बात करेंगे तो बहुत बड़ी बात हो जाएगी। भले ही build castles in the air के लिए आप 'हवाई किले' बना लें और 'फूले न समाएँ' (walk on air) लेकिन अगर आप to clear the air के लिए 'ग़लतफ़हमी या संदेह दूर करने' के बजाय 'हवा साफ़ करने' लगे, तो आपका ही पत्ता साफ़ हो जाएगा। हाथ-पाँव ठंडे होना, दिल में ठंडक पड़ना, आँखों की ठंडक तक तो ठीक है, लेकिन क्या cold feet के लिए 'ठंडा पाँव' और cold shoulder के लिए 'ठंडा कंधा' लिखना ठीक रहेगा? ठंडे की बात की है, तो कुछ गरम हो जाए। गूगल महाशय के लिए hot head 'गरम सिर' है, तो hot products 'गरम सामान'। Hot potato 'विषम या विवादास्पद स्थिति' नहीं, बल्कि 'गरम आलू' है, तो hot property 'चहेता' नहीं बल्कि 'गरम संपत्ति'। निश्चित रूप से, Sky is the limit के लिए आकाश ही सीमा है और Issues you are going to champion के लिए जिन मुद्दों पर आप चैंपियन बनने जा रहे हैं जैसे मशीनी अनुवाद मूल अर्थ के संप्रेषण में ख़लल पैदा करेंगे।

अनुवाद में वाक्य-रचना के संदर्भ में आगत शब्दों के लिंग निर्णय की समस्या भी उभरती है। 'ई-मेल' को ही ले लें, इसका स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों रूपों में प्रयोग देखा जा सकता है। अंग्रेज़ी या अन्य भाषाओं के जो शब्द लंबे समय से हिंदी में प्रयुक्त हो रहे हैं, उनका लिंग प्रयोग से निर्धारित हो चुका है। लेकिन हिंदी में लिंग-निर्णय का कोई एक सर्वसम्मत आधार नहीं है। यही कारण है कि अनुवादक को हिंदी के शब्द-भंडार में लिंग संबंधी अव्यवस्था से भी जूझना पड़ता है।

अनुवाद प्रक्रिया में प्रूफ़रीडिंग बेहद महत्वपूर्ण चरण है। अपने काम को कई बार संपादित करने के बाद भी उपर्युक्त कारणों से हम ग़लती सुधारने में चूक जाते हैं और अनुवाद बेमज़ा हो जाता है। शब्दों के अर्थ का अनर्थ करने वाले कारकों में मशीनी अनुवाद की भूमिका भी शामिल है। इसमें कोई संदेह नहीं कि ऐसे टूल्स की सहायता से अनुवाद की गति बढ़ती है। लेकिन कंप्यूटर से तुरंत अनुवाद करने की जल्दबाज़ी में अकसर अर्थ का अनर्थ होते हुए भी हम देखते हैं। हालाँकि छोटे और सरल वाक्यों का अनुवाद सामान्यत: ठीक-ठाक ही होता है, लेकिन जब उससे 'क्या हो जाए दो-दो हाथ?' का अनुवाद करने के लिए कहा जाए, तो क्या वह What happens two-two hands? से उलट कुछ करेगा? अतः इसके प्रयोग में सावधानी और मानवीय हस्तक्षेप ज़रूरी है, वरना नज़रें हटीं, दुर्घटना घटी। 

कंप्यूटर के शुरुआती दिनों में बहुत सुना था Garbage in – Garbage out’  जब आप गूगल की सहायता से "टाँग मत अड़ाओ। पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। पाँव फूलने लगे। चरण-स्पर्श करें।" का अनुवाद करने बैठें, तो garbage न होने के बावजूद निकलेगा "Do not put a leg. Killed the axe on the leg. The feet started blooming. Touch step." जैसा garbage ही।

CAT (Computer-aided Translation) टूल्स में NMT (Neural Machine Translation) के प्रवेश के साथ ही भ्रामक अनुवाद की तादाद भी बढ़ी है। नीचे प्रस्तुत हैं कुछ रेडीमेड अनुवाद के नमूने :

कुकीज़ आपके द्वारा दिए गए ऑनलाइन विज्ञापनों की सिलाई को सक्षम बनाती हैं। (Cookies enable the tailoring of online advertisements served to you.)

लगातार आत्म-मूल्यांकन और आत्म-प्रतिबिंब हमारे कार्यक्रम का हिस्सा हैं। (Constant self-assessment and self-reflection are part of our program.)

कमला हैरिस ने अपने भावी पति से एक अंधे तारीख़ को मुलाक़ात की। (Kamala Harris met her future husband Doug Emhoff on a blind date.)

Sleep mode (नींद मोड), name-calling (नाम पुकारना), bed time (बिस्तर का समय), foreign country (विदेशी देश), bottom line (आधार रेखा) जैसे अनुवाद भी मशीनी अनुवाद की ही देन हैं।

आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस (AI) अन्य कार्यों में यद्यपि सहायक हो, लेकिन भाषा से जुड़े कार्य में इस पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता।

अनुवाद संपन्न होने के बाद स्वयं उसकी समीक्षा करना वर्तनी में चूक, ग़लत शब्दों के प्रयोग आदि से बचने का एकमात्र उपाय है। अपना ही लिखा दुबारा पढ़ते समय अकसर अच्छे व बेहद सटीक शब्द भी सूझते हैं। एक आलोचक की नज़र से अपने कार्य की समीक्षा करें। आपकी शब्दावली जितनी समृद्ध होगी, आपके पास अनुवाद में बेहतर शब्दों के प्रयोग के उतने ही विकल्प होंगे। शब्द-चयन पर ज़्यादा ध्यान दें। न केवल उनके अर्थ पर ग़ौर करें बल्कि देखें कि क्या शब्द-समूह में वे शब्द कारगर साबित होते हैं। वरना वाक्य में ग़लत शब्द उतना ही अखरता है जितना मधुर आलाप में गायक का स्वर बिगड़ना।

निष्कर्ष यही कि समस्याएँ तो हर क्षेत्र में मौजूद होती हैं, लेकिन उन्हें बाधा मानने के बजाय चुनौती मानकर उनका सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है ताकि हमारे कार्य की गुणवत्ता बढ़े। जिन ग़लतियों का मैंने ज़िक्र किया है, वे मुझसे भी हुई हैं। लेकिन अपनी ग़लतियों को अनुभव मानकर उनसे कुछ सीखने में ही बुद्धिमानी है।

वैसे क्या करें, क्या न करें से जूझते अनुवादक के बारे में भाषाविद यूजीन अल्बर्ट नाइडा (Eugene A. Nida) की यह टिप्पणी भी कितनी सटीक है :     

"The translator's task is essentially a difficult and often a thankless one. He is severely criticized if he makes a mistake, but only faintly praised when he succeeds, for often it is assumed that anyone who know two languages ought to be able to do as well as the translator who has laboured to produce a text."  

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लेखिका : आर. टी. पुष्पा 

आत्म-परिचय

विज्ञान से स्नातक की उपाधि पाने के बाद इच्छा तो थी माइक्रोबायोलॉजी में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई करने की, लेकिन परिस्थितिवश हिंदी में एमए और फिर पीएचडी की उपाधि हासिल की। कैरियर की शुरुआत प्राध्यापकी से की, लेकिन बाद में विजया बैंक में 20 वर्ष कार्यरत रहने के बाद बतौर वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का दामन थामा। पाँच-छह भारतीय भाषाओं पर अच्छी पकड़ और अंग्रेज़ी व हिंदी में सृजनात्मक लेखन ने मीडिया संबंधी अनुसंधान कार्य से जुड़े संस्थान में बतौर भाषा विशेषज्ञ काम करने का मौक़ा दिया। यहाँ पाँच सौ से भी अधिक क्लासिक फ़िल्मों के सबटाइटल से जुड़े अनुवाद कार्य ने आगे का मार्ग प्रशस्त किया और तब से इसी राह पर सफ़र जारी है।


गुरुवार, 15 अप्रैल 2021

भाषा को एक ऐसा दरिया होने की ज़रूरत है जो दूसरी ज़बानों को भी ख़ुद में समेट सके

20 साल की उम्र तक मैं भी अपने कई अन्य बिहारी साथियों की तरह "Vast" को "भास्ट", "शाम" को "साम", "सड़क" को "सरक" और "Fool" को "फूल" बोलता रहा। 

अफ़सोस इस बात का नहीं था कि मैं ग़लत बोलता या ग़लत लिखता था, तकलीफ़ इस बात की थी कि मुझे यह पता ही नहीं था कि मेरे लिखने और बोलने में कितनी ग़लतियाँ थीं।

इसके लिए ज़िम्मेदार किसे ठहराया जाए? अपनी कमअक़्ली को या पढ़ाई-लिखाई की उस परिपाटी को जिसमें मैं बड़ा हुआ?

अगर आप भी मेरे ही आयुवर्ग (30-35 वर्ष) और मेरी ही पृष्ठभूमि के हैं, तो आपको बचपन में रट्टा मारकर वर्णमाला के अक्षरों को याद करते हुए यह बोलना याद होगा - य, र, ल, व, ह, तालव्य स, दन्त स, मूर्धन्य स, अच्छ, त्र, ज्ञ। और ज़रा वह भी याद कीजिए   W से व, Bh से भ। किताबों में कभी नहीं बताया गया कि V से भ होता है लेकिन हम "इंडिया इज अ भास्ट कंट्री" बोलने के आदी हो गए थे।

इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि उच्चारण का सूत्र समझाकर भी हमारा एजुकेशन सिस्टम हमें यह न समझा सका कि तालु से कभी "स" का उच्चारण हो ही नहीं सकता, उससे "श" का ही उच्चारण निकलेगा। अपनी बत्तीसी को नज़दीक लाए बिना "स" का उच्चारण निकल ही नहीं सकता। मूर्धन्य तो ख़ैर अभी भी टेढ़ी खीर है।

जब अपनी ही मातृभाषा में सही बोलना न आए तो उर्दू और अंग्रेज़ी के लफ़्ज़ों का सही उच्चारण कर पाना तो ख़याली पुलाव ही था।

लेकिन जब जान पर बन आए तो एक कोस दूर जल रहा दीया भी कड़कड़ाती ठंड से लड़ने का साहस दे जाता है। संक्षेप में, डूबते को तिनके का सहारा।

दिल्ली आ तो गया था पढ़ाई करने, लेकिन ख़र्च इतना था कि घर से भेजे गए पैसे नाकाफ़ी होते थे। कॉल सेंटर में नौकरी करने के अलावा और कुछ सूझ रहा नहीं था। मुश्किल बस यह थी कि कभी किसी तो कभी किसी और शब्द के ग़लत उच्चारण के चलते जॉब मिल ही नहीं पाती थी। तब डोमेस्टिक और इंटरनेशनल दोनों ही तरह के कॉल सेंटरों का स्टैंडर्ड बड़ा हाई हुआ करता था। 

यह समझने में ज़्यादा देर नहीं लगी कि जब तक अपनी ज़बान ठीक नहीं करूँगा, उर्दू और अंग्रेज़ी की ज़बान ठीक नहीं होने वाली। और जब तक ज़बान ठीक नहीं होती, जॉब नहीं मिलने वाली। 

हिन्दी ठीक करना उतना भी मुश्किल नहीं था। कॉलेज के गुरुओं और दिल्ली के साथियों की दया से इतना समझ आ गया कि मूलतः ड़, श और आ से शुरू होने वाले शब्दों (मसलन आराम को अराम या पाकिस्तान को पकिस्तान बोलना) का उच्चारण गड़बड़ हो रहा है।

बचपन की सरल हिन्दी व्याकरण वाली उन्हीं किताबों ने बताया कि ड़ सही तरह से बोलने के लिए अपनी जिह्वा को अपने तालु से टच करवाना होगा, जबकि बचपन में देखे गए मुख के अंदर की तमाम मुद्राओं को दर्शाने वाले चित्रों के बावजूद ड़ को र बोलने की ही आदत रही। दुर्भाग्य यह कि ऐसी आदत सिर्फ़ हम विद्यार्थियों की नहीं, बल्कि उन्हीं किताबों से हमें पढ़ाने वाले हमारे हिन्दी के शिक्षकों की भी थी।

बहरहाल कुछ ही महीनों में हिन्दी का ठीक-ठाक उच्चारण करने लगा, लेकिन यह फ़ॉर्मूला उर्दू और अंग्रेज़ी पर लागू नहीं हो पाता। उसके लिए कुछ दूसरा जुगाड़ निकालने की ज़रूरत थी, क्योंकि वहाँ तो शब्दावली की कंगाली भी एक बड़ी समस्या थी।

आख़िर यह पता कैसे चले कि मज़दूर में तो ज़ का उच्चारण होता है, लेकिन मजबूर में ज का उच्चारण होता है? यह कैसे

समझ आए कि Individual (इंडिविजुअल) में तो ज का उच्चारण होता है, लेकिन Visual में वही ज बोलने के लिए जीभ के अगले हिस्से को उल्टा घुमाना पड़ जाता है जबकि Visa में ज़ का उच्चारण होता है?

अंग्रेज़ी के साथ भी ज़्यादा मुश्किलें नहीं हुईं। सिंपल ज़बान है, बस पैटर्न समझने की देर है। 

J है तो ज, Z है तो ज़, D और DG वाले ज में ज (जैसे Individual, Grudge) और Si और Su वाले ज में जीभ का अग्रभाग उल्टा घुमाकर कुछ ऐसे बोलना है जैसे य और ज का मेल बन जाए (जैसे Vision, Measure, Pleasure, Treasure आदि)। Sh है तो श, S है तो स। चाहे Ph हो या F, उच्चारण फ़ ही होगा क्योंकि अंग्रेज़ी में तो फ का साउंड होता ही नहीं है, न ही ड़ का साउंड होता है और न ही क्ष का। इसलिए पैटर्न तलाश पाए तो अंग्रेज़ी बोलने को दुरुस्त करना कोई बहुत मुश्किल चुनौती नहीं थी।  

असली दुश्वारियाँ तो उस ज़बान को ठीक करने की थीं, जिसके बिना हिन्दी अधूरी है।

उर्दू के लफ़्ज़ों के लिए ख़ुद की मरम्मत के दो ही तरीक़े समझ आए और बहुत हद तक कारगर भी रहे, पहला तो अपने आस-पास उन लोगों की तलाश करना जो शुद्ध बोलते हों, और दूसरा उन सीखे हुए नए शब्दों को ठीक उसी तरह से लिखने की कोशिश करना, जैसे उन्हें बोला जाएगा।

अपनी लेखनी में नुक़्ते का इस्तेमाल शुरू करने का सिलसिला इसी तलफ़्फ़ुज़ को ठीक करने की चाहत के साथ शुरू हुआ। सही बोलने के लिए सही लिखना और सही लिखने के लिए सही पढ़ना साथ ही सही सुनना बहुत ज़रूरी है।

हिन्दी में उर्दू के इतने लफ़्ज़ हैं कि शायद उन लफ़्ज़ों के बिना हिन्दी मुकम्मल ही नहीं हो पाएगी। क्या बिना "दुकान" के हमारी दिनचर्या पूरी होगी? क्या बिना "ख़ुशी" और बिना "ग़म" के हमारे जज़्बात पूरे होंगे?

भले ही ग़लत उच्चारणों के साथ, मगर क्या इन शब्दों के बिना हमारी जवानी पूरी हो सकती है? कॉलेज के दिनों में "बेवफ़ाई" का रोना, घर बनवाने में "मज़दूरों" की "मेहनत", "मजबूरी" में मैगी खाना, जॉब के चक्कर में "जुदाई" सहना, "बेरोज़गारी" के "आलम" में "ज़माने" का ताना, अपने "ख़्वाबों" में "ख़ज़ाने" की "तलाश", बचपन में चाचा का टिफ़िन देने "क़ारख़ाने" जाना वग़ैरह-वग़ैरह।

क्या आप चाहेंगे कि क़ारख़ाने जाने की जगह आप "कार खाने" जाएँ? 

कई विद्वान साथियों की दलील है कि जब हिन्दी में नुक़्ते का कॉन्सेप्ट ही नहीं है, तो उसका इस्तेमाल करके अपनी हिन्दी को जबरन जटिल बनाने की क्या आवश्यकता है। मैं मानता हूँ कि न्याय-व्यवस्था के लिए बनाए गए क़ानूनों के अलावा अनिवार्यता तो किसी भी चीज़ की नहीं होनी चाहिए, लेकिन बहुधा फ़र्क़ स्थापित करना ज़रूरी हो जाता है। "दशहरे में नौ कन्याओं को जमाने का दस्तूर है" और जाने-अनजाने ही सही, "मर्दों के भीतर मिसॉजनी ज़माने का दस्तूर है।"

अंत में जाने-माने स्क्रीनप्ले राइटर जावेद सिद्दिक़ी साहब को अपने शब्दों में क्वोट करूँगा, "जो भाषा दरिया की तरह हो, जो दूसरी ज़बानों को भी ख़ुद में इस तरह समेट ले जैसे वे उसी भाषा की हैं, तो उस भाषा का विस्तार होते रहना तय है।"

ड़ और ढ़ में तो हम नीचे बिंदी लगाते ही हैं न, बस उसी परंपरा को अगर दूसरे अक्षरों पर भी ज़रूरत के अनुसार लागू कर दें तो इससे क्या बिगड़ जाएगा? मुझे नुक़्ते से परहेज़ का न तो मक़सद समझ आता है, न ही नुक़्ते का इस्तेमाल न करने का कोई फ़ायदा समझ आता है।

लेखक : राहुल कुमार आत्म-परिचय न्यूज़ डेस्क पर 10 साल के अनुभव के दौरान अनुवाद का हुनर सीखा। पिछले चार साल से फ़ुल टाइम अनुवाद के ही काम में लगा हूँ। अतीत में National Geographic, HBO, Discovery आदि के लिए टीवी शो और फ़िल्मों की स्क्रिप्ट ट्रांसलेट की है। फ़िलहाल ज़्यादातर काम यूज़र इंटरफ़ेस लोकलाइज़ करने का है। लिंक्डइन प्रोफ़ाइल लिंक : https://www.linkedin.com/in/webprofilerahulkumar


गुरुवार, 8 अप्रैल 2021

करियर के रूप में अनुवाद को क्यों चुनें?

      सदियों से अनुवाद ज्ञान के आदान-प्रदान का माध्यम रहा है। मानव सभ्यता के विकास में अनुवाद का विशेष महत्व रहा है। आज वैश्वीकरण के इस दौर में अनुवाद का महत्व और उसकी आवश्यकता कई गुणा बढ़ गई है। दुनिया भर में अनुवाद की बढ़ती मांग को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि कोई इसे करियर के रूप में अपनाता है तो उसके लिए काम की कभी कमी नहीं रहेगी।

      यदि आपकी भाषाओं में रुचि है, आपमें कार्य के प्रति समर्पण और जुनून है, तो आपके लिए अनुवाद का क्षेत्र असीम संभावनाएं लिए प्रतीक्षा कर रहा है। यदि आप अपनी मातृभाषा के अतिरिक्त किसी एक अन्य भाषा पर पूरा अधिकार रखते हैं, आपके सामान्य ज्ञान का स्तर अच्छा है, विभिन्न विषयों के बारे में सामान्य जानकारी है, तो आपके लिए अनुवाद क्षेत्र संभावनाओं के द्वार खोल सकता है। आइए, अनुवाद को करियर के रूप में चुनने के कारणों पर नजर डालें।

1. अपनी मर्जी के खुद मालिकयदि आप स्वतंत्र रूप से अनुवाद करना (फ़्रीलांस) चुनते हैं, तो कार्य-स्थल और कार्य-समय अपनी मर्जी से चुन सकते हैं। अपनी सुविधानुसार बेरोक-टोक घर में रह कर काम कर सकते हैं। आप अपने अन्य जरूरी काम भी निपटा सकते हैं और जब समय मिले अनुवाद कार्य भी कर सकते हैं।

2. रोचक और ज्ञानवर्धक कार्य: यदि आपके अंदर कुछ करने की बेचैनी और कुछ नया जानने की जिज्ञासा है तो समझ लें कि अनुवाद का क्षेत्र आपके लिए सर्वथा उपयुक्त है। अनुवाद करने के लिए आपको विविध विषय मिलेंगे जिससे हमेशा रोचकता बनी रहेगी। आपका शब्द-सामर्थ्य बढ़ता जाएगा और विषयों की जानकारी में वृद्धि होती रहेगी। इसलिए कभी इस कार्य से ऊब या बोरियत नहीं होगी।

3. कार्य की स्वतंत्रता: “अनुवाद को करियर क्यों बनाएं?” का यह सबसे महत्वपूर्ण जवाब है। जो स्वतंत्र रूप से कार्य करना पसंद करते हैं, उनके लिए अनुवाद सर्वथा उपयुक्त तो है ही, साथ ही भविष्य में संभावनाओं के अनेक द्वार भी खोलता है। आपको सरकारी या निजी क्षेत्र की नौकरी के उलट पर्यवेक्षकीय नियंत्रण, समय का बंधन, टोका-टाकी, असुरक्षा जैसी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। जो विषय आपकी रुचि का हो, आप केवल उसी को चुनने और कार्य करने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी नौकरी में आपको केवल एक सीमित दायरे में कार्य करना होता है, जबकि अनुवाद के क्षेत्र में विषयों की विविधता आपको ज्ञान के खुले आकाश में विचरण कराती है। आप अपनी आवश्यकताओं और सुविधा के अनुसार अंशकालिक या पूर्णकालिक कार्य करना चुन सकते हैं। किसी विषय विशेष में आपको अच्छा ज्ञान है तो उस विषय में अनुवाद करना आपके लिए बेहतर होगा। साहित्य में रुचि है तो साहित्यिक अनुवाद, तकनीक या विज्ञान में रुचि है तो तकनीकी अनुवाद, या आजकल लोकप्रिय हो रहे वीडियो गेम में रुचि है तो उसका अनुवाद करना चुन सकते हैं। यदि आप मेरी तरह से “जैक ऑफ ऑल ट्रेड्स, मास्टर ऑफ नन” हैं, तब तो आपके लिए सारे ही विषय उपलब्ध हैं।

4. विशेषज्ञता हासिल करने का अवसरअनुवाद करते-करते आप अपनी रुचि के विषय में विशेषज्ञता हासिल कर सकते हैं। उस विषय में जितना अधिक कार्य करेंगे उतने ही आप उस विषय के माहिर बनते जाएंगे। आपको अनुवाद के बाजार में विशेषज्ञ होने का लाभ हमेशा मिलेगा।

5. अच्छी आय के अवसर: संभवतः अनुवाद के क्षेत्र को करियर के रूप में चुनने के लिए सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कारण यही है कि इस क्षेत्र में कार्य करने पर आपकी आय की कोई सीमा नहीं होगी। आपके मन में एक प्रश्न उठ सकता है कि वैश्विक बाजारीकरण के इस दौर में जब कंप्यूटरों के प्रयोग से मशीनी अनुवाद बहुत तेजी से विकसित होता जा रहा है तो मानव अनुवाद के क्षेत्र में संभावनाएं कैसे बचेंगी। आपको कतई आशंकित होने की आवश्यकता नहीं है। कम से कम गैर-यूरोपीय भाषाओं में मशीनी अनुवाद कभी भी सफल नहीं हो सकता। मशीन की सहायता से एक पुतला तो बनाया जा सकता है लेकिन उसमें कभी प्राण नहीं फूंके जा सकते हैं। मशीनों का निष्प्राण अनुवाद हमारी भारतीय भाषाओँ की आत्मा को कभी व्यक्त नहीं कर सकता। मानव अनुवाद की आवश्यकता हमेशा बनी रहेगी। अपने अनुवाद की दर आप स्वयं निर्धारित करते हैं। अपनी क्षमता और योग्यता के आधार पर आप चाहे जितनी ऊंची दर प्राप्त कर सकते हैं। हमारे ही देश में हजारों अनुवादक अनुवाद कार्य से प्रति माह छह अंकों की आय अर्जित कर रहे हैं।

6. करियर की प्रगति के असीम अवसरआप सोच सकते हैं कि भाषाओं के ज्ञान के आधार पर अन्य क्षेत्रों में भी कार्य किया जा सकता है तो अनुवाद को ही क्यों चुनें। जवाब बिलकुल सीधा है। अनुभव और कौशल में वृद्धि के साथ ही आपके करियर की भी प्रगति होती जाती है। आप स्वयं नियंत्रित करने लगते हैं कि आपको कब और कितना काम करना है, अपने काम का कितना पारिश्रमिक लेना है। यही चरम परिणति होती है कि सभी निर्णय स्वयं लेने की स्थिति में आप आ जाएं।

अंत में, याद रखिए, यदि आपके अंदर भाषाओं के प्रति रुचि है, जोश है, जुनून है तो अनुवाद से अच्छा कार्यक्षेत्र आपके लिए कोई और नहीं हो सकता।

लेखक : विनोद शर्मा

बीएसएनएल में सेवारत रहते हुए 1991 में अंग्रेजी में एमए किया, लगातार 1993 में हिंदी में एमए किया फिर 1995 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से अनुवाद में पीजी डिप्लोमा किया। 1995 से 1997 तक शौकिया अनुवाद कार्य किया। जुलाई 1997 से विधिवत पेशेवर अनुवादक के रूप में कार्य शुरू किया, लेकिन विकीपीडिया, रोजेटा फाउंडेशन, ट्रांलेटर्स विदाउट बॉर्डर्स आदि के लिए स्वैच्छिक अनुवाद भी चलता रहा। 2005 से कैट टूल्स से परिचय हुआ। सबसे पहले एसडीएलएक्स, फिर वर्डफास्ट पर काम करना शुरू किया। उसके बाद तो अनुवाद यात्रा चलती रही। नए-नए टूल्स शामिल होते रहे, नए-नए विषयों और क्षेत्रों में, नए-नए फाइल प्रकारों से होते हुए ये सफर जो चला तो चलता ही रहा। 2010 से 2020 तक दबिगवर्ड कंपनी के लिए गूगल रिव्यूअर के रूप में नियमित कार्य किया।

An Engineer with a passion for languages went on to complete Masters both in English and Hindi in 1991 and 1993 respectively. He did not stop here, completed a PG Diploma in Translation from IGNOU in 1995. Started with amateur translation for Wikipedia, Rosseta Foundation and Translators without Borders. Turned professional in 1997 and never stopped. Started using CAT tools in 2005 with SDLX, Wordfast, Idiom and since then no looking back. Worked as Google Reviewer through thebigword from 2010 to 2020. Specialization in Medical, Legal and Technical fields. Working mostly with foreign companies only.


सोमवार, 15 मार्च 2021

अनुवादक बनाम योग्यता

इस तथ्य से सभी बखूबी परिचित हैं कि भारत में अनुवाद क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा हुआ है। इसके अनेक कारण हैं। देश की सरकारों का अनुवाद के प्रति उपेक्षापूर्ण रवैया भी एक बड़ा कारण है। हम यह भी जानते हैं कि किसी उपाय से तत्क्षण कोई परिवर्तन नहीं लाया जा सकता। जब सामूहिक रूप से कोई कार्रवाई होना संभव नजर नहीं आ रहा हो तो हमें व्यक्तिगत स्तर पर किए जा सकने वाले उपायों के बारे में सोचना होगा।

हम यह कल्पना करके चलना चाहते हैं कि ‘अनुवादक’ का आशय पूर्णकालिक अनुवादक से है जिसकी आजीविका ही अनुवाद कार्य है। विदेशी अनुवादकों और हमारे देशी अनुवादकों के बीच एक भारी अंतर देखने को मिलता है। विशेषकर यूरोप और अमरीका में कोई भी पेशेवर अनुवादक जीवन पर्यंत अपना मूल्य-संवर्धन करता रहता है। अर्थात, सबसे पहले तो उन देशों में सामान्यतः बिना किसी तैयारी के कोई जल्दी से अनुवाद क्षेत्र में कदम नहीं रखता। एकाधिक भाषाओं में प्रवीणता रखने के साथ-साथ अनुवाद विषय में डिग्री या डिप्लोमा लेने के बाद ही वे लोग अनुवाद क्षेत्र में पदार्पण करते हैं। प्रारंभ में, कम से कम एक साल तक वे प्रशिक्षु के रूप में कार्य करते हैं, उसके बाद भी, कहीं अनुवादक के रूप में नौकरी करते हैं और साल दो साल नौकरी करने के बाद कहीं जाकर स्वतंत्र अनुवादक के रूप में अनुवाद क्षेत्र में उतरते हैं। एक बात और उल्लेखनीय है इन विदेशी अनुवादकों के बारे में कि अच्छे अनुवादक एक बार अपनी विशेषज्ञता का विषय चुन लेने के बाद उसी विषय में अनुवाद करते हैं। समय-समय पर सम्मेलनों, गोष्ठियों और वेबिनारों में भाग लेते हैं, तथा स्वयं को अनुवाद क्षेत्र में होने वाली हर गतिविधि से अद्यतित रखने का प्रयास करते हैं।

अब हम अपने देश में अनुवादकों की स्थिति पर नजर डालें तो पाएँगे कि लगभग सभी पक्षों- सरकारों, कंपनियों, एजेंसियों, संस्थाओं तथा व्यक्तियों की दृष्टि में अनुवाद एक महत्वहीन कार्य है। यहाँ एक मिथ्या धारणा घर कर चुकी है कि दो भाषाएँ जानने वाला कोई भी व्यक्ति अनुवाद कर सकता है। इस गलत धारणा के दायरे में हर पढ़ा-लिखा व्यक्ति आ जाता है। यदि हिंदी माध्यम से पढ़ाई की है तो अंग्रेजी पढ़ी ही होगी तथा यदि अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की है तो हिंदी अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ी होगी। इस प्रकार अनुवाद के संबंध में मूलभूत जानकारी न होते हुए भी हजारों लोग अनुवाद कार्य से जुड़ जाते हैं। आजकल तो अनेक शब्दकोश और मशीनी अनुवाद उपकरण ऑनलाइन उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से कामचलाऊ अनुवाद कर दिया जाता है। अनुवाद करवाने वाली संस्था या व्यक्ति का उद्देश्य भी एक भाषा के दस्तावेजों को दूसरी भाषा में उपलब्ध करवाना भर होता है (भले ही इस प्रकार तैयार हुए दस्तावेजों में भयंकर त्रुटियाँ हों)। हम आए दिन देश की उच्च स्तरीय प्रतियोगी परीक्षाओं में आने वाले द्विभाषी प्रश्नपत्रों में ऐसे अनुवाद के नमूने देखते आ रहे हैं।

दोनों परिदृश्यों को प्रस्तुत करने के बाद, अब मैं एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर आप सब का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ। यदि आप एक पेशेवर अनुवादक हैं तो अनुवाद आपकी आजीविका का साधन, आपकी रोजी-रोटी है। आपने अनुवाद क्षेत्र में कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की है, कोई डिप्लोमा या डिग्री नहीं ली है। आप किसी विशेष विषय के विशेषज्ञ भी नहीं हैं, अतः आप एक निम्न अनुवाद दर पर अपना कार्य कर रहे हैं। अपने ही आस-पास कुछ अनुवादकों को ऊँची अनुवाद दरों पर कार्य करते देखते हैं तो आपके मन में कुंठा जन्म लेती है। आपको लगता है कि आप भी अनुवाद कर रहे हैं और वे थोड़े से लोग जो अच्छी दरें पा रहे हैं, वे भी अनुवाद ही करते हैं, फिर यह अंतर क्यों है?

मित्रो, जो कार्य आपकी आजीविका का साधन है, उसके प्रति संपूर्ण समर्पण की आवश्यकता होती है। स्वयं को उस कार्य के योग्य बनाने के लिए निरंतर प्रयास करने होते हैं। जिन-जिन विषयों में आपको अनुवाद करना है, उन विषयों की अच्छी जानकारी प्राप्त करना भी जरूरी होता है। यहाँ मैं कुछ ऐसे उपायों का उल्लेख करना चाहता हूँ जिनसे आप एक कुशल अनुवादक बन कर, उतने ही श्रम में अधिक धनराशि अर्जित कर सकते हैं-

1. अनुवाद कार्य को अपनाने से पहले (अपना चुके हैं तो अब भी) स्वयं का आत्म-मूल्यांकन करें कि जिन दो भाषाओं का आप उपयोग करना चाहते हैं या कर रहे हैं, उन दोनों भाषाओं में आपकी दक्षता कितनी है। वाक्य-विन्यास, शब्द-भंडार, व्याकरणिक-ज्ञान, वर्तनी की शुद्धता आदि के मामले में आप कहाँ ठहरते हैं। स्वयं अपना मूल्यांकन न कर सकें, तो एक बार अपने लिखे हुए किसी लेख, अनुवाद आदि की जाँच उस भाषा के विशेषज्ञ से करवा लें और जो परिणाम सामने आए उसके अनुसार अपनी कमजोरियों को सुधारने का निरंतर प्रयास करें। यदि आवश्यकता हो तो उस भाषा के किसी वरिष्ठ शिक्षक या व्याख्याता से कुछ महीने ट्यूशन ले लें।

2. थोड़ा सा समय अध्ययन के लिए सुरक्षित रख लें। जिन विषयों की आपको कोई जानकारी नहीं है, उनमें से किसी भी विषय पर अनुवाद कार्य मिलने पर, इंटरनेट पर उस विषय से संबंधित सामग्री का अध्ययन करें, विकीपीडिया और भारत ज्ञानकोश में आपको हजारों विषयों पर आलेख मिल जाएँगे। आज आप इंटरनेट पर हर विषय की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। विषय की जानकारी लिए बिना अनुवाद न करें।

3. अनुवाद क्षेत्र में प्रौद्योगिकी का प्रयोग तेजी से बढ़ रहा है। “कंप्यूटर की सहायता से अनुवाद” के अनेक साधन उपलब्ध हैं जिन्हें CAT Tool कहा जाता है। यदि अभी तक आप केवल डॉक्यूमेंट फाइलों में ही अनुवाद करते आ रहे हैं, तो इन कंप्यूटर सहाय्यित अनुवाद साधनों का उपयोग करना भी सीख लें। एक बार प्रारंभ करने की देर है, बाद में तो आपको स्वयं अनुभव हो जाएगा कि ये साधन कितने उपयोगी हैं। वास्तव में इन साधनों में एक अंतर्निर्मित स्मृति होती है (जिसे ट्रांसलेशन मेमोरी होती है), जिसे आप सुविधा के लिए एक भंडार के रूप में समझ सकते हैं। आप जितना भी अनुवाद करते हैं, उसके स्रोत और अनुवाद दोनों इस मेमोरी में संग्रहित होते जाते हैं। अगली बार जब आपके सामने वही वाक्य या वाक्यांश आता है तो मेमोरी में से उसका अनुवाद अपने आप सामने आ जाता है। इस तरह से मेमोरी की सहायता से आपके अनुवाद करने की गति भी बढ़ जाती है और सटीकता भी। हर बार एक जैसा ही अनुवाद होगा, ऐसा नहीं होगा कि आप कहीं तो कोई शब्द लिख दें और कहीं कुछ और।

4. कंप्यूटर सहाय्यित अनुवाद साधनों में अधिक लोकप्रिय हैं- वर्डफास्ट, एसडीएल ट्राडोस स्टूडियो, मेमोक्यू, ईडियम वर्ल्डसर्वर, गूगल ट्रांसलेटर टूलकिट, मेटकैट आदि। इन सबके ट्यूटोरियल यूट्यूब पर वीडियो के रूप में उपलब्ध हैं जिन्हें देख कर आप स्वयं सीख सकते हैं। यूट्यूब पर ही मेमोरी का उपयोग करने के ट्यूटोरियल भी उपलब्ध हैं।

अनुवादकों के लिए ऑनलाइन अनेक मंच हैं जिनकी सदस्यता आपको लेनी चाहिए। इनमें से कुछ प्रमुख मंच हैं –प्रोज.कॉम, ट्रांलेटर्सकैफे.कॉम, ट्रांसलेशनडायरेक्ट्री.कॉम। इनके अलावा भी कई मंच हैं। इन मंचों पर अनुवाद कार्य पोस्ट किए जाते हैं, जिनके लिए अनुवादक अपनी-अपनी बोली लगाते हैं। ग्राहक को जिसकी बोली उचित लगती है, वह उसे ही उस कार्य को आवंटित कर देता है।

यदि आप इन उपायों को अपनाते हैं तो मुझे विश्वास है कि आपकी अनुवादक के रूप में योग्यता में वृद्धि तो होगी ही, साथ में आपकी आय भी बढ़ेगी। 

शुभमस्तु।

लेखक : विनोद शर्मा

बीएसएनएल में सेवारत रहते हुए 1991 में अंग्रेजी में एमए किया, लगातार 1993 में हिंदी में एमए किया फिर 1995 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से अनुवाद में पीजी डिप्लोमा किया। 1995 से 1997 तक शौकिया अनुवाद कार्य किया। जुलाई 1997 से विधिवत पेशेवर अनुवादक के रूप में कार्य शुरू किया, लेकिन विकीपीडिया, रोजेटा फाउंडेशन, ट्रांलेटर्स विदाउट बॉर्डर्स आदि के लिए स्वैच्छिक अनुवाद भी चलता रहा। 2005 से कैट टूल्स से परिचय हुआ। सबसे पहले एसडीएलएक्स, फिर वर्डफास्ट पर काम करना शुरू किया। उसके बाद तो अनुवाद यात्रा चलती रही। नए-नए टूल्स शामिल होते रहे, नए-नए विषयों और क्षेत्रों में, नए-नए फाइल प्रकारों से होते हुए ये सफर जो चला तो चलता ही रहा। 2010 से 2020 तक दबिगवर्ड कंपनी के लिए गूगल रिव्यूअर के रूप में नियमित कार्य किया।

An Engineer with a passion for languages went on to complete Masters both in English and Hindi in 1991 and 1993 respectively. He did not stop here, completed a PG Diploma in Translation from IGNOU in 1995. Started with amateur translation for Wikipedia, Rosseta Foundation and Translators without Borders. Turned professional in 1997 and never stopped. Started using CAT tools in 2005 with SDLX, Wordfast, Idiom and since then no looking back. Worked as Google Reviewer through thebigword from 2010 to 2020. Specialization in Medical, Legal and Technical fields. Working mostly with foreign companies only.

शनिवार, 4 नवंबर 2017

हिंदी में भी होनी चाहिए लिंग्वी जैसी वेबसाइट

इंटरनेट पर उपलब्ध अधिकतर अंग्रेज़ी-हिंदी शब्दकोश न तो प्रामाणिक पर्याय उपलब्ध कराते हैं न उनमें संदर्भ के अनुसार उपयुक्त शब्द मिलते हैं। शब्दकोश और गूगल शब्दकोश में तो कई बार वर्तनी के स्तर पर भी ग़लतियाँ दिखती हैं। इस स्थिति में हिंदी में लिंग्वी (https://www.linguee.com) जैसी वेबसाइट की आवश्यकता को बार-बार महसूस करना स्वाभाविक है। जर्मनी की इस वेबसाइट में अंग्रेज़ी, जर्मन, फ़्रेंच, स्पैनिश जैसी कई यूरोपीय भाषाओं में न केवल कोशीय पर्याय दिए गए हैं, बल्कि पदबंधों के अनुवाद भी उपलब्ध हैं। अनेक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, कंपनियों आदि के दस्तावेज़ों के स्तरीय अनुवादों की उपलब्धता ने यूरोपीय भाषाओं के अनुवादकों को बड़ी राहत दी है। अनुवादकों को इस वेबसाइट से कैसी जानकारी मिलती है, इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं :

1.


2.


पहले स्क्रीनशॉट में null and void के कोशीय अर्थ दिख रहे हैं और दूसरे में इस पदबंध के अनुवाद वाक्य के साथ दिए गए हैं।

प्रसिद्ध अनुवादशास्त्री यूलियान हाउस ने अपनी पुस्तक ट्रांसलेशन क्वालिटी असेसमेंट:पास्ट ऐंड प्रेजेंट  में अनुवाद मूल्यांकन और अनुवाद प्रशिक्षण के संदर्भ में कॉर्पस आधारित वेबसाइटों के महत्व के बारे में लिखा है।अगर हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में लिंग्वी जैसी कोई वेबसाइट उपलब्ध होती है, तो इससे अनुवाद अध्ययन और व्यावसायिक अनुवाद, दोनों क्षेत्रों से जुड़े व्यक्ति लाभान्वित होंगे।

कई बार समय की कमी के कारण हमें अनुवाद की उपयुक्तता सुनिश्चित करने के लिए शोध-पड़ताल करने या विशेषज्ञों की सलाह लेने का समय नहीं मिलता। लिंग्वी पर अनुवाद के उदाहरण वाक्य के साथ उपलब्ध होते हैं। इससे हमें सही विकल्प चुनने में मदद मिलती है। हर संदर्भ में केवल कोशीय पर्याय मूल पाठ के कथ्य को सही ढंग से व्यक्त नहीं करता। पाठ-संदर्भित अर्थ भी बहुत महत्वपूर्ण होता है। अच्छे अनुवादकों में यह गुण होता है कि वे कोशीय पर्याय पर निर्भर नहीं होते। लिंग्वी में वाक्यों के उदाहरणों में पाठ-संदर्भित पर्यायों का अध्ययन करके अनुवादकों को अपनी रुचि के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने में भी मदद मिलती है। इसे लिंग्वी की लोकप्रियता का प्रमाण ही कहा जाएगा कि इसके उपयोगकर्ताओं की संख्या आठ करोड़ 50 लाख से अधिक है।

अंग्रेज़ी-हिंदी युग्म में लिंग्वी जैसी वेबसाइट का उपलब्ध होना बहुत ज़रूरी है। इससे न केवल नए अनुवादकों को अच्छे अनुवाद के उदाहरणों का अध्ययन करके अपनी अनुवाद दक्षता को बेहतर बनाने का मौका मिलेगा, बल्कि हिंदी सीखने वाले विदेशियों, अनुवाद अध्ययन के विद्यार्थियों, शिक्षकों आदि को भी मदद मिलेगी।

हिंदी के विकास में अनुवाद की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी गद्य का आधार अंग्रेज़ी से हिंदी में किए गए अनुवादों ने ही निर्मित किया है। आज भी हिंदी की वाक्य संरचना पर अंग्रेज़ी का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है। चाहे पत्रकारिता का क्षेत्र हो या मनोरंजन का, हिंदी में अनुवाद के दायरे का हर जगह विस्तार हो रहा है। लिंग्वी जैसी वेबसाइट के उपलब्ध होने पर अनुवाद की गुणवत्ता सुनिश्चित करना आसान हो जाएगा।

हिंदी में लिंग्वी जैसी वेबसाइट बनाने के लिए सरकारी कार्यालयों में पहले से उपलब्ध प्रामाणिक अनुवादों का डिजिटलीकरण किया जा सकता है। भाषा और अनुवाद के क्षेत्र में सक्रिय ग़ैर-सरकारी संस्थाओं, प्रकाशकों आदि की भी मदद ली जा सकती है। अंग्रेज़ी-हिंदी युग्म में एक बड़ी संख्या में प्रामाणिक और स्तरीय द्विभाषिक पाठों को उपलब्ध कराना एक ऐसा महत्वपूर्ण कार्य है जिसकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

लेखक: सुयश सुप्रभ

शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2017

Learner’s Guide to Hindi Prefixes and word formation. Introduction (ब्रायन स्टील के ब्लॉग से साभार)

The full 20-page study, with 800 examples (and a fuller Introduction), is available here.
*

Hindi word formation is a wide and complex lexical and morphological field. The following two studies will cover some aspects of word formation of special interest and potential benefit for learners of Hindi as a Second Language. They are offered in Draft form, in the hope that those more knowledgeable will send me their corrections and suggestions in order to make this amateur compilation more accurate and useful for myself and for fellow intermediate students of Hindi.
*
After four years of study, I remain deeply engaged in a time- and energy-sapping struggle with this fascinating but quite difficult foreign language. Some of my previous language-learning strategies have proved very useful in keeping me on a slowly productive learning curve but the extreme foreignness of Hindi script, vocabulary, morphology and grammar has presented a formidable linguistic Himalayan range to scale and here I am, still exploring the foothills. All these Handy Hindi Hints articles are therefore basically for my own benefit, but the considerable work involved makes the results potentially worth sharing with others on the same long trek.

One of the special difficulties for speakers of English (and many other languages) is that Hindi vocabulary does not offer any of the usual convenient and comforting ‘toeholds’ or mnemonics which are available to us in our attempts to speed up comprehension of the foreign languages we are most likely to learn: the European Romance Languages. A large quantity of words passed down from Latin are still easily and instantly comprehensible to us in these languages.

This applies most particularly to those words and word families containing familiar prefixes and suffixes, like con-, dis-, mis-, pre-, pro-, un- etc.
and
-ate, -ary, -ful, -ive, -ous, -sion, -tion, etc.

As a simple example of the practical value of this shared knowledge, take the word constitution with its prefix, con- and suffix, -tion. In many countries of Europe, and beyond, the corresponding term is instantly identified (especially in its written form):
constitution (French), constitución, costituzione, constituição, constitució and constituție, etc. Equal similarities apply to most other words containing the affixes con- and -tion and, indeed, to many other cognate Latin (and other) prefixes and suffixes.

This is a valuable learning advantage that the second language learner probably takes for granted while wrestling with the many very real problems of the foreign language.

In learning Hindi, however, NONE of these basic similarities exist and as a consequence, most native Hindi words have to be individually committed to memory. This is such a huge task that the only way to make satisfactory progress is to find shortcuts.

One obvious strategy is to systematise one’s lexical acquisitions by studying the morphology of Hindi word formation in order to build up an appreciation of Hindi word families by memorising common prefixes, suffixes and other frequently used word-compounding elements like those I shall be introducing in this academically unorthodox but (I hope) learner-friendly study.

This article and the following one will deal with detailed analyses of these two types of word formation in Hindi.

1. Words which consist of the addition of a particle (prefix) or an existing word to an existing word or ‘word base’ to form semantically related words.

2. Other selected word formations which consist of a suffix, or compounding word or element appended to an existing word. These words and compounds will be the subject of my next article.

Acknowledgements
(See Reference List for publishing details.)

In my study of the lexicon of written and spoken media Hindi, I have been especially aided by the authors of two excellent bilingual romanised dictionaries:

Hardev Bahri, Rajjpal Advanced Learner’s Hindi-English Dictionary, 2 vols., Delhi, Rajpal Publishing, 2011. (In Vol. 2, there are Appendices on Prefixes (upsarg) on pp. 1767-1771 and on Suffixes (pratyay) on pp. 1772-1778.)

Allied’s Hindi-English Dictionary, edited by Henk Wagenaar and Sangeeta S. Parikh
(New Delhi, Allied Publishers, 1996.)

For some months I have also had the luxury of referring to the bilingual Hindi and English Thesaurus by Arvind Kumar (both the online version and the printed one) and in the last three months, I have also benefitted from the recent research and romanised renderings offered in Dr. Badrinaath Kapoor’s Advanced Hindi-English Dictionary (New Delhi, Prabhaat Prakaashan, 2007).

Of the Hindi grammars I have consulted, the most thorough treatment of prefixes and suffixes is in Professor Yamuna Kachru’s magisterial study, Hindi (John Benjamins, Amsterdam, 2006, Chapter 8, ‘Word Formation’, pp 111-129. This very densely packed chapter also deals with other characteristic forms of lexical compounding in Hindi which learners need to know.

Also invaluable in my initial Hindi studies and as a constant reference point was R.S.McGregor’s enduring classic analysis, Outline of Hindi Grammar, OUP, 3rd. ed., 1995. His treatment of word formation affixes (pp 207-215) is a useful starting point on these topics.

I am also grateful to my tutor, Indramohan Singh, for timely answers to a series of last-minute queries.

*

Selected Hindi Prefixes and Other Initial Compounding Elements

Classification
(Definitions in inverted commas are from Yamuna Kachru.)

1. Negatives, antonyms, opposition

a-, “not, without”
an-, ana-, “not, without”
ap-
bad-
be-
duh- : + dur-, dush- “bad, difficult”
gair
ku-, “bad, deficient”
laa-
naa-
ni-
nih-, nir-, nis-, nish-, “without”
par- other
prati- 1. against
vi-. 1. “different, opposite”
[vi-2, : See’Section 5.]

2. Positive

su-, good
sat-, sad-, true
dharm (COMPOUND)

3. Number, quantity, size

alp (COMPOUND), small
adh-, and ardh-, half
bahu- ( C ) multi-, poly-
ek-, one
du- (do-), two-
dvi-, two, twin
tri-, three-

4. References to place, position, order and time (similar to some English prepositions and prefixes)

(The brief introductory glosses in inverted commas given below are from Professor Yamuna Kachru, pp. 112- 113 and 124-125.)

aa-, “to, toward, up to”
abhi-, “toward, intensity”
adhi-, “additional, above”
[adho-, lower]
aNtah, aNtar, “inter”
anu-, “after”
ap-. “away, off, down”
ati-, “excessive”
av-, “away, diminution”
door-, far, distant
[nav-, new(ly), neo-]

pari-, “around, whole”
[poorv-, (time): former, previous
(place): east(ern)]
pra-, 1. before, pre-, forward
[pra-, 2. excellent. supreme. See Section 5.]
[punah and punar-, [re-]

up(a)-, up(i)-, “subordinate”
ut, ud-, un-, “upward”
[sah-, with, co-]
[baa-, containing, with]
saN-, with, together
[san- / sam-, same, equal]

5. Intensity or degree

[poorn-, full(y)]
pra- 2. “forward, excess”
[vi- 2. completely]
[saarv-, sarv-, all-]

6. Similar COMPOUND elements indicating scale, rank and intensity

madhya-, ( C), medium, middle-
madhyam, ( C), medium
mukhya- . chief, main
raaj-, royal
vishva ( C), universal, world

7. Personal

aatma- ( C), self-
sva(a)-, self, own
praan- ( C), life-
yog ( C), combination, joining, yoga
mano-, mental, psycho-

8. Selected productive compounding words

8.1 Elements

agni ( C), fire
bhoo, ( C) and bhoomi ( C), land, soil
jal ( C ), water
vaayu ( C) air

8.2 People

jan ( C ), people
lok ( C), people
jeev ( C), & jeevan ( C)
jaat ( C) & jaati ( C)
arth, ( C), money; meaning
raashtra, (C ) nation

8.3 Action Compounds

kaarya ( C), work, action
kriyaa ( C) action
krit-, done

*
All these are examined and illustrated in detail as a vocabulary-building exercise on my Hindi web page. Approximately 800 examples and translations are given as well as glosses for the ‘base word’ to which the prefix or other element is added.

Author: Brian Steel


Link: 
https://briansteel.wordpress.com/2013/05/20/translation-42-learners-guide-to-hindi-prefixes-and-word-formation-introduction