वर्तमान दौर में जहाँ हिंदी के प्रचलन में वृद्धि हो रही है, उसके स्तर में निरंतर गिरावट नजर आ रही है। हिंदी भाषा में मानो अराजकता की स्थिति बनती जा रही है। समाचार माध्यमों और सामाजिक मीडिया में गलत वर्तनी का धड़ल्ले से प्रयोग किया जा रहा है। आज केवल प्रचलन पर जोर दिया जा रहा है। आप लंबे समय से किसी शब्द को जिस तरह से लिखते आए हैं, आपको लगता है कि वही वर्तनी सही है। पत्रकार और सामाजिक मीडिया पर लेखन कर रहे लेखक/कवि आदि भी इस विषय पर कोई ध्यान नहीं देना चाहते।
हिंदी में लघु एवं दीर्घ स्वरों के चार युग्म हैं, इ-ई, उ-ऊ, ए-ऐ तथा ओ-औ, जिनके प्रयोग में प्रायः गलतियाँ होती हैं, अर्थात युग्म के स्वरों की मात्राओं का परस्पर एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग हो जाता है। हिंदी भाषा पूर्णतः उच्चारण पर आधारित वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है। हाँ, समस्या वहाँ आती है जब हमारा उच्चारण भी दोषयुक्त होता है।
सबसे पहले लेते हैं युग्म ‘इ-ई’ को, इसकी मात्राएँ क्रमशः लघु और दीर्घ होती हैं। लघु स्वर या छोटी इ के प्रयोग के उदाहरण हैं- कवि, किसान, रिश्ता, पिता आदि। दीर्घ स्वर के उदाहरण हैं- जीत, खुशी, ठीक आदि। इस युग्म के गलत प्रयोग का सर्वाधिक दिखाई देने वाला उदाहरण है- ‘कि’ तथा ‘की’ का एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग। यहाँ हमें ध्यान रखना होगा कि ‘कि’ का प्रयोग किसी संदर्भ, उदाहरण आदि का उल्लेख करने से पूर्व किया जाता है। जैसे ‘राम ने देखा कि सामने से एक कार आ रही थी’, ‘उसने कहा कि...’, ‘उसने सोचा कि....’, ‘उसने बताया कि...’, ‘उसका दिल इतनी तेजी से धड़का कि...’। जबकि ‘की’ का प्रयोग या तो संबंध सूचक (स्त्रीलिंग) या ‘करना’ क्रिया के स्त्रीलिंग भूतकाल रूप में किया जाता है। संबंध सूचक के रूप में प्रयोग के उदाहरण हैं- ‘प्रभु की इच्छा’, ‘राम की पत्नी’, ‘दर्द की दवा’, ‘घर की बात’। भूतकाल क्रिया रूप के उदाहरण हैं- उसने खिड़की बंद की, मैंने अमरनाथ की यात्रा की, उसने प्रार्थना की। बड़े-बड़े ख्यातनाम लेखक भी इस गलती को अक्सर दुहराते हैं।
अगला स्वर युग्म है ‘उ-ऊ’। लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग कर शब्द का अर्थ ही बदल देते हैं। जैसे- सवेरे की धुप (सही वर्तनी- धूप), उसने पुछा (सही वर्तनी- पूछा), उसने कबुल किया (सही वर्तनी - कबूल), दिल में शुल सी चूभी (सही वर्तनियाँ- शूल, चुभी)।
इसके बाद आता है ‘ए-ऐ’ युग्म, इसमें भी कुछ लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग करते हैं। सर्वाधिक भ्रम होता है ‘में’ और ‘मैं’ को ले कर। ‘मैं’ उत्तम वचन सर्वनाम है जिसका प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं के लिए करता है तथा इसमें सदैव ही ‘ऐ’ की मात्रा लगनी चाहिए, लेकिन कई लोग ‘में’ का प्रयोग करते हैं। वर्तनी गलत होने से शब्द का अर्थ बदल जाता है, जैसे ‘सेर’ वजन की एक माप है जबकि ‘सैर’ का अर्थ भ्रमण या पर्यटन होता है। ‘मेला’ जहाँ लोगों के उल्लासपूर्ण समागम को व्यक्त करता है, वहीं गलत मात्रा लगने से ‘मैला’ का अर्थ गंदा या अपवित्र हो जाता है। इसी प्रकार केश-कैश, फेल-फैल, बेर-बैर आदि के परस्पर प्रयोग से अर्थ बदल जाते हैं।
इस कड़ी में अंतिम स्वर युग्म है- ‘ओ-औ’ का। पूर्वोक्त की भांति इन स्वरों की मात्राओं के प्रयोग में भी असावधानीवश भूल होती है। कौन, मौन, गौण, प्रौढ़, दौड़ आदि के स्थान पर गलत वर्तनी का प्रयोग करके अक्सर कोन, मोन, गोण, प्रोढ़, दोड़ लिख दिया जाता है। अब ‘शौक’ का ही उदाहरण लीजिए। शौक आपकी पसंद या अभिरुचि को प्रकट करता है, किंतु ‘शोक’ लिखते ही वह मातम में बदल जाता है। लौटा-लोटा या लौटना-लोटना में लौटना का आशय है कहीं से वापस आना, जबकि लोटना का अर्थ है लेटना, उलट-पलट होना।
तो आपने देखा कि वर्तनी की अशुद्धि अर्थ का अनर्थ भी कर सकती है और आपके द्वारा लिखी गई अच्छी से अच्छी रचना के स्तर को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है। आपको थोड़ा सा सतर्क होने की जरूरत है। अपने लेख की किसी मित्र या गुरु से समीक्षा करवा लें। जिन अशुद्धियों को चिह्नित किया जाए, उन पर कुछ दिन तक विशेष ध्यान दें। बाद में सब ठीक हो जाएगा।
लेखक: विनोद शर्मा
हिंदी में लघु एवं दीर्घ स्वरों के चार युग्म हैं, इ-ई, उ-ऊ, ए-ऐ तथा ओ-औ, जिनके प्रयोग में प्रायः गलतियाँ होती हैं, अर्थात युग्म के स्वरों की मात्राओं का परस्पर एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग हो जाता है। हिंदी भाषा पूर्णतः उच्चारण पर आधारित वैज्ञानिक भाषा है। इसे जैसा बोला जाता है वैसा ही लिखा जाता है। हाँ, समस्या वहाँ आती है जब हमारा उच्चारण भी दोषयुक्त होता है।
सबसे पहले लेते हैं युग्म ‘इ-ई’ को, इसकी मात्राएँ क्रमशः लघु और दीर्घ होती हैं। लघु स्वर या छोटी इ के प्रयोग के उदाहरण हैं- कवि, किसान, रिश्ता, पिता आदि। दीर्घ स्वर के उदाहरण हैं- जीत, खुशी, ठीक आदि। इस युग्म के गलत प्रयोग का सर्वाधिक दिखाई देने वाला उदाहरण है- ‘कि’ तथा ‘की’ का एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग। यहाँ हमें ध्यान रखना होगा कि ‘कि’ का प्रयोग किसी संदर्भ, उदाहरण आदि का उल्लेख करने से पूर्व किया जाता है। जैसे ‘राम ने देखा कि सामने से एक कार आ रही थी’, ‘उसने कहा कि...’, ‘उसने सोचा कि....’, ‘उसने बताया कि...’, ‘उसका दिल इतनी तेजी से धड़का कि...’। जबकि ‘की’ का प्रयोग या तो संबंध सूचक (स्त्रीलिंग) या ‘करना’ क्रिया के स्त्रीलिंग भूतकाल रूप में किया जाता है। संबंध सूचक के रूप में प्रयोग के उदाहरण हैं- ‘प्रभु की इच्छा’, ‘राम की पत्नी’, ‘दर्द की दवा’, ‘घर की बात’। भूतकाल क्रिया रूप के उदाहरण हैं- उसने खिड़की बंद की, मैंने अमरनाथ की यात्रा की, उसने प्रार्थना की। बड़े-बड़े ख्यातनाम लेखक भी इस गलती को अक्सर दुहराते हैं।
अगला स्वर युग्म है ‘उ-ऊ’। लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग कर शब्द का अर्थ ही बदल देते हैं। जैसे- सवेरे की धुप (सही वर्तनी- धूप), उसने पुछा (सही वर्तनी- पूछा), उसने कबुल किया (सही वर्तनी - कबूल), दिल में शुल सी चूभी (सही वर्तनियाँ- शूल, चुभी)।
इसके बाद आता है ‘ए-ऐ’ युग्म, इसमें भी कुछ लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग करते हैं। सर्वाधिक भ्रम होता है ‘में’ और ‘मैं’ को ले कर। ‘मैं’ उत्तम वचन सर्वनाम है जिसका प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयं के लिए करता है तथा इसमें सदैव ही ‘ऐ’ की मात्रा लगनी चाहिए, लेकिन कई लोग ‘में’ का प्रयोग करते हैं। वर्तनी गलत होने से शब्द का अर्थ बदल जाता है, जैसे ‘सेर’ वजन की एक माप है जबकि ‘सैर’ का अर्थ भ्रमण या पर्यटन होता है। ‘मेला’ जहाँ लोगों के उल्लासपूर्ण समागम को व्यक्त करता है, वहीं गलत मात्रा लगने से ‘मैला’ का अर्थ गंदा या अपवित्र हो जाता है। इसी प्रकार केश-कैश, फेल-फैल, बेर-बैर आदि के परस्पर प्रयोग से अर्थ बदल जाते हैं।
इस कड़ी में अंतिम स्वर युग्म है- ‘ओ-औ’ का। पूर्वोक्त की भांति इन स्वरों की मात्राओं के प्रयोग में भी असावधानीवश भूल होती है। कौन, मौन, गौण, प्रौढ़, दौड़ आदि के स्थान पर गलत वर्तनी का प्रयोग करके अक्सर कोन, मोन, गोण, प्रोढ़, दोड़ लिख दिया जाता है। अब ‘शौक’ का ही उदाहरण लीजिए। शौक आपकी पसंद या अभिरुचि को प्रकट करता है, किंतु ‘शोक’ लिखते ही वह मातम में बदल जाता है। लौटा-लोटा या लौटना-लोटना में लौटना का आशय है कहीं से वापस आना, जबकि लोटना का अर्थ है लेटना, उलट-पलट होना।
तो आपने देखा कि वर्तनी की अशुद्धि अर्थ का अनर्थ भी कर सकती है और आपके द्वारा लिखी गई अच्छी से अच्छी रचना के स्तर को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है। आपको थोड़ा सा सतर्क होने की जरूरत है। अपने लेख की किसी मित्र या गुरु से समीक्षा करवा लें। जिन अशुद्धियों को चिह्नित किया जाए, उन पर कुछ दिन तक विशेष ध्यान दें। बाद में सब ठीक हो जाएगा।
लेखक: विनोद शर्मा
Needed Hindi Saralikaran
जवाब देंहटाएंI prefer nukta,chandrabindu,anuswar ,ि ,ू and dandaa /full stop free Hindi.
If Hindi words can be understood in simple spellings(Vartani) and have no other meanings for these words then why not write these words in easy as you pronounce/write Vartani.
This simplification may ease into easy to read Roman Transliteration.
Here is my conversion of this article in a simple Vartani.
वर्तनी की अशुद्धीयॉ बनाम हीन्दी का गीरता स्तर (लेखक: वीनोद शर्मा)
वर्तमान दौर मॅ जहॉ हीन्दी के प्रचलन मॅ वृद्धी हो रही है, उसके स्तर मॅ नीरन्तर गीरावट नजर आ रही है. हीन्दी भाषा मॅ मानो अराजकता की स्थीती बनती जा रही है. समाचार माध्यमॉ और सामाजीक मीडीया मॅ गलत वर्तनी का धडल्ले से प्रयोग कीया जा रहा है. आज केवल प्रचलन पर जोर दीया जा रहा है. आप लन्बे समय से कीसी शब्द को जीस तरह से लीखते आए है, आपको लगता है की वही वर्तनी सही है. पत्रकार और सामाजीक मीडीया पर लेखन कर रहे लेखक/कवी आदी भी इस वीषय पर कोई ध्यान नही देना चाहते.
हीन्दी मॅ लघु एवन् दीर्घ स्वरॉ के चार युग्म है, इ-ई, उ-ऊ, ए-ऐ तथा ओ-औ, जीनके प्रयोग मॅ प्रायः गलतीयॉ होती है, अर्थात युग्म के स्वरॉ की मात्राऑ का परस्पर एक-दुसरे के स्थान पर प्रयोग हो जाता है. हीन्दी भाषा पुर्णतः उच्चारण पर आधारीत वैज्ञानीक भाषा है. इसे जैसा बोला जाता है वैसा ही लीखा जाता है. हॉ, समस्या वहॉ आती है जब हमारा उच्चारण भी दोषयुक्त होता है.
सबसे पहले लेते है युग्म ‘इ-ई’ को, इसकी मात्राएॅक्रमशः लघु और दीर्घ होती है. लघु स्वर या छोटी इ के प्रयोग के उदाहरण है- कवी, कीसान, रीश्ता, पीता आदी. दीर्घ स्वर के उदाहरण है- जीत, खुशी, ठीक आदी. इस युग्म के गलत प्रयोग का सर्वाधीक दीखाई देने वाला उदाहरण है- ‘की’ तथा ‘की’ का एक-दुसरे के स्थान पर प्रयोग. यहॉ हमॅ ध्यान रखना होगा की ‘की’ का प्रयोग कीसी सन्दर्भ, उदाहरण आदी का उल्लेख करने से पुर्व कीया जाता है. जैसे ‘राम ने देखा की सामने से एक कार आ रही थी’, ‘उसने कहा की...’, ‘उसने सोचा की....’, ‘उसने बताया की...’, ‘उसका दील इतनी तेजी से धडका की...’. जबकी ‘की’ का प्रयोग या तो सन्बन्ध सुचक (स्त्रीलीन्ग) या ‘करना’ क्रीया के स्त्रीलीन्ग भुतकाल रुप मॅ कीया जाता है. सन्बन्ध सुचक के रुप मॅ प्रयोग के उदाहरण है- ‘प्रभु की इच्छा’, ‘राम की पत्नी’, ‘दर्द की दवा’, ‘घर की बात’. भुतकाल क्रीया रुप के उदाहरण है- उसने खीडकी बन्द की, मैन्ने अमरनाथ की यात्रा की, उसने प्रार्थना की. बडे-बडे ख्यातनाम लेखक भी इस गलती को अक्सर दुहराते है.
अगला स्वर युग्म है ‘उ-ऊ’. लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग कर शब्द का अर्थ ही बदल देते है. जैसे- सवेरे की धुप (सही वर्तनी- धुप), उसने पुछा (सही वर्तनी- पुछा), उसने कबुल कीया (सही वर्तनी - कबुल), दील मॅ शुल सी चुभी (सही वर्तनीयॉ- शुल, चुभी).
इसके बाद आता है ‘ए-ऐ’ युग्म, इसमॅ भी कुछ लोग लघु की जगह दीर्घ और दीर्घ की जगह लघु मात्रा का प्रयोग करते है. सर्वाधीक भ्रम होता है ‘मॅ’ और ‘मैन्’ को ले कर. ‘मैन्’ उत्तम वचन सर्वनाम है जीसका प्रयोग वक्ता या लेखक स्वयन् के लीए करता है तथा इसमॅ सदैव ही ‘ऐ’ की मात्रा लगनी चाहीए, लेकीन कई लोग ‘मॅ’ का प्रयोग करते है. वर्तनी गलत होने से शब्द का अर्थ बदल जाता है, जैसे ‘सेर’ वजन की एक माप है जबकी ‘सैर’ का अर्थ भ्रमण या पर्यटन होता है. ‘मेला’ जहॉ लोगॉ के उल्लासपुर्ण समागम को व्यक्त करता है, वही गलत मात्रा लगने से ‘मैला’ का अर्थ गन्दा या अपवीत्र हो जाता है. इसी प्रकार केश-कैश, फेल-फैल, बेर-बैर आदी के परस्पर प्रयोग से अर्थ बदल जाते है.
इस कडी मॅ अन्तीम स्वर युग्म है- ‘ओ-औ’ का. पुर्वोक्त की भान्ती इन स्वरॉ की मात्राऑ के प्रयोग मॅ भी असावधानीवश भुल होती है. कौन, मौन, गौण, प्रौढ, दौड आदी के स्थान पर गलत वर्तनी का प्रयोग करके अक्सर कोन, मोन, गोण, प्रोढ, दोड लीख दीया जाता है. अब ‘शौक’ का ही उदाहरण लीजीए. शौक आपकी पसन्द या अभीरुची को प्रकट करता है, कीन्तु ‘शोक’ लीखते ही वह मातम मॅ बदल जाता है. लौटा-लोटा या लौटना-लोटना मॅ लौटना का आशय है कही से वापस आना, जबकी लोटना का अर्थ है लेटना, उलट-पलट होना.
तो आपने देखा की वर्तनी की अशुद्धी अर्थ का अनर्थ भी कर सकती है और आपके द्वारा लीखी गई अच्छी से अच्छी रचना के स्तर को बुरी तरह से प्रभावीत कर सकती है. आपको थोडा सा सतर्क होने की जरुरत है. अपने लेख की कीसी मीत्र या गुरु से समीक्षा करवा लॅ. जीन अशुद्धीयॉ को चीह्नीत कीया जाए, उन पर कुछ दीन तक वीशेष ध्यान दॅ. बाद मॅ सब ठीक हो जाएगा.
लेखक: वीनोद शर्मा