सोमवार, 22 जून 2015

अनुवाद पर सामान्य चर्चा (लेखक: विनोद शर्मा)

भारत में अनुवाद के संबंध में यह मिथक अत्यंत व्यापक रूप से प्रचलित है अनुवाद में क्या है। फलाँ भाषा में ही तो लिखना है। नया तो कुछ करना नहीं है।एक बार मेरे पास एक सज्जन आए और बोले कुछ पेज हिंदी में टाइप करवाने हैं। मैंने विनम्रता से कहा, भाई, मैं टाइपिस्ट नहीं हूँ।इस पर वे सज्जन बोले, ‘ये पेज अंग्रेजी में हैं, बस इनको हिंदी में टाइप करवाना है।’ मैंने उन्हें बताया कि किसी पाठ को एक भाषा से दूसरी भाषा में परिवर्तित करने को अनुवाद कहते हैं और मैं यह काम कर सकता हूँ। इसकी अमुक फीस होगी। फीस सुनते ही वे सज्जन भड़क गए और बोले, ‘खाली हिंदी में टाइप करने के इतने पैसे, यह काम तो किसी टाइपिंग इंस्टीट्यूट वाला कोई भी टाइपिस्ट कर देगा।’ मैंने हाथ जोड़ कर उन सज्जन से प्रार्थना की कि कृपया किसी टाइपिस्ट से ही यह काम करवा लें, मुझसे नहीं हो सकेगा।

यह तो था एक आम आदमी के मन में अनुवाद के प्रति दृष्टिकोण का उदाहरण। ऐसे ही एक दिन एक वकील साहब आ पहुँचे जमीन संबंधी किसी मुकदमे के 25-30 पृष्ठ ले कर और मुझसे बोले, ‘ये कागजात हिंदी में हैं और इनको अंग्रेजी में टाइप करवाना है। उच्च न्यायालय में हिंदी के दस्तावेज स्वीकार नहीं किए जाते। वैसे तो मैं खुद अंग्रेजी में एमए हूँ, लेकिन आप अनुवाद करते रहते हैं तो आपको अदालती भाषा का अनुभव होगा।’ मैंने उन्हें बता दिया कि उनका काम हो जाएगा और उसके लिए प्रति पृष्ठ अमुक राशि की फीस लगेगी। वकील साहब फीस की राशि सुन कर उछल पड़े और बोले, ‘हमारी कचहरी में बैठे टाइपिस्ट रोज सैकड़ों दस्तावेज टाइप करते हैं, इससे अच्छा तो मैं उनसे टाइप करवा लूँगा।’ मैंने विनम्रता से उनसे कहा, ‘वकील साहब, अगर कचहरी के टाइपिस्ट से काम चल सकता तो आप कभी का करवा लेते। दूसरे, आप किसी न किसी से पता लगा कर मेरे पास आए हैं, तो आपको पता है कि हिंदी से अंग्रेजी भाषा में अनुवाद, वह भी विधिक दस्तावेजों का, आसान काम नहीं है। कठिन काम और वह भी पूरी सटीकता से किया जाएगा तो उसकी फीस तो लगेगी ही। आप ये दस्तावेज ले जाइए और पहले अनुवाद की दर का पता कर लीजिए, फिर आप चाहेंगे तो मैं आपका काम कर दूँगा।’ वकील साहब चले गए। दो दिन बाद फिर उनका फोन आया, ‘विनोद जी, मैं जमीन के मुकदमे वाले कागजात ले कर आपसे मिला था। क्या आप वह काम कर देंगे?’ मैंने उनको आश्वस्त किया कि कागजात ले कर आ जाएँ, उनका काम हो जाएगा।

इन दो उदाहरणों को उद्धृत करने का प्रयोजन यही है कि आम लोगों को अनुवाद के बारे में सही जानकारी नहीं है। हम अनुवादकों का यह दायित्व हो जाता है कि हम उन्हें न केवल अनुवाद की प्रक्रिया बल्कि उसकी जटिलताओं और उसमें लगने वाले श्रम के बारे में अवगत कराएँ तथा अनुवाद में क्या है वाले मिथक को तोड़ने का प्रयास करें।

भारत में अधिकतर अनुवाद कार्य हमें कंपनियों या एजेंसियों के माध्यम से मिलता है। चूँकि एजेंसियाँ भी व्यवसाय करने के लिए खोली गई हैं, वे अधिकाधिक मुनाफा कमाने के उद्देश्य से अनुवादक को कम से कम राशि का भुगतान करना चाहती है। यहाँ मैं सभी अनुवादकों से अनुरोध करना चाहूँगा कि बाजार में अनुवाद की दर के स्तर को बनाए रखने या गिरने देने में हमारा पूरा योगदान होता है। यदि हमें अनुवाद के इस असंगठित क्षेत्र में अनुवाद दरों को एक मान्य स्तर पर बनाए रखना है तो हमें अपनी न्यूनतम अनुवाद दर को तय करना ही होगा। सरसरी तौर पर यदि देखा जाए तो एक रुपया प्रति शब्द वह दर है जिससे नीचे किसी अनुवादक को काम नहीं करना चाहिए। हाँ, अपने अनुभव, दक्षता और विषय विशेष की क्लिष्टता के आधार पर आप एक रुपए से अधिक की दर अपने लिए तय कर सकते हैं। हममें से कुछ अनुवादक अति निम्न दरों पर कार्य ले लेते हैं जिससे एजेंसियों का काम आसान हो जाता है और वे सभी अनुवादकों से उसी निम्न दर की अपेक्षा करने लगती हैं।

एक और समस्या आती है थोक काम की- अधिकतर एजेंसियाँ इस आधार पर अनुवादकों को निम्न दर देना चाहती हैं कि अनुवाद कार्य की मात्रा अत्यधिक है, लंबा काम है। ऐसी स्थिति में 10-20 पैसे की रियायत देने तक तो कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन इससे अधिक छूट के लिए हाँ न करें। एजेंसी को समझाने की कोशिश करें कि अनुवाद आपका व्यवसाय है। आपके कार्य के घंटे निश्चित हैं और औसत आय भी निश्चित है। 10 घंटे काम करने के बाद यदि आपको औसत आय नहीं होगी तो काम कैसे चलेगा। एजेंसी का काम छोटा हो या बड़ा आपको तो 10 घंटे काम करना है और उन 10 घंटों में उतना ही उत्पादन होगा। बड़े काम से आपका उत्पादन तो बढ़ नहीं जाएगा। इसलिए एजेंसियों के बड़े काम के झाँसे में न आएँ। अपनी न्यूनतम दर से कोई समझौता न करें।

समय-सीमा या डेडलाइन का पालन करना प्रत्येक अनुवादक के लिए अनिवार्य है। अनुवाद की गुणवत्ता के बाद यही सबसे महत्वपूर्ण कारक है जो किसी भी अनुवादक की प्रतिष्ठा को बनाता या बिगाड़ता है। जब भी अनुवाद का कोई प्रस्ताव मिले, पहले फाइलों की जाँच कर लें और उनके अनुवाद में लगने वाले समय में किसी अप्रत्याशित विलंब की गुंजाइश को शामिल करके ही समय-सीमा माँगें या स्वीकार करें। कई बार ऐसा होता है कि एजेंसी से काम का प्रस्ताव मिलते ही, बिना फाइलों को देखे, अनुवादक पुष्टि कर देते हैं और जब निश्चित समय पर एजेंसी द्वारा अनूदित फाइलों की माँग की जाती है तो तरह-तरह के बहाने बनाने पड़ते हैं। इससे हमारी प्रतिष्ठा ही गिरती है।

अंत में, सबसे महत्वपूर्ण है अनुवाद की विषयवस्तु। बहुत से अनुवादक किसी भी विषय के अनुवाद के लिए हाँ कर देते हैं, जबकि उस विषय पर उनकी जानकारी न के बराबर होती है। अनुवाद का कार्य श्रमसाध्य तो है ही साथ में गजब के धैर्य की भी आवश्यकता होती है। यदि अनुवाद हमारी आजीविका है तो हमें अपनी प्रतिष्ठा भी बनानी है। दो-चार दिन कोई काम नहीं मिला, तो इसका अर्थ यह नहीं होना चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर किसी भी विषय को ले लें, भले ही बाद में गुणवत्ता को ले कर हमसे तरह-तरह के प्रश्न किए जाएँ। ऐसी स्थिति में सबसे अच्छा तो यह होता है कि एजेंसी को साफ-साफ बता दिया जाए कि आपको इस विषय का अधिक अनुभव तो नहीं है किंतु अपनी तरफ से अच्छे से अच्छा करने का प्रयास किया जाएगा। अब यदि एजेंसी आपको फिर भी काम देती है तो गुणवत्ता के संबंध में आपकी उतनी जिम्मेदारी नहीं रह जाएगी।

एक अच्छा अनुवादक बनने के तीन मूलमंत्र हैं – 1. गुणवत्ता 2. समय की पाबंदी 3. भाषा पर पकड़। इसके बाद आती है संबंधित विषय की पूर्ण जानकारी। हम अनुवादकों को अनुवाद के लिए अधिकतर आने वाले विषयों पर अपनी जानकारी को अद्यतन करते रहना आवश्यक है। आज इंटरनेट पर उपलब्ध संसाधनों के चलते यह कार्य काफी सुगम हो गया है।

लेखक: विनोद शर्मा

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुंदर-सटीक और जानकारी पूर्ण लेख..................हार्दिक धन्यवाद श्री विनोद शर्मा जी

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