शनिवार, 11 मई 2013

अनुवाद से संबंधित विज्ञप्ति (हस्तक्षेप से साभार)

वर्धा। महात्‍मा गांधी अन्तर्राष्‍ट्रीय हिन्दी विश्‍वविद्यालय के अनुवाद एवम् निर्वचन विद्यापीठ के अधिष्‍ठाता प्रो. देवराज का कहना है कि अनुवाद दो भिन्‍न संस्‍कृतियों को जोड़ने का माध्‍यम है। भारतीय अस्मिता की पहचान बनाने के लिये अनुवाद एक महत्‍वपूर्ण साधन के रूप में उभर रहा है। अनुवाद के क्षेत्र में रोजगार की वैश्विक संभावनायें और बढ़ रही हैं।

सूचना प्रौद्योगिकी के विकास में अनुवाद की भूमिका पर प्रो. देवराज का मानना है कि सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ जीवन के विभिन्‍न क्षेत्रों में विकास की गति तेज हुयी है तथा वैश्‍वीकरण की शक्तियों ने हर क्षेत्र को प्रभावित किया है। इससे अकादमिक जगत भी अछूता नहीं रहा है। परिणाम यह हुआ कि सूचना प्रौद्योगिकी के माध्‍यम से आज विभिन्‍न क्षेत्रों में विविध स्‍थानों पर किये जा रहे शोध को हम अपने डेस्‍कटॉप पर देख सकते हैं और उसकी समीक्षा कर सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि विभिन्‍न भाषाओं में किये जाने वाले शोध को हिन्दी एवम् अन्‍य भारतीय भाषाओं के माध्‍यम से सबके लिये उपलब्‍ध कराना होगा। इस कार्य के लिये अनुवाद तथा अनुवाद प्रौद्योगिकी का सहारा देना होगा। विश्‍वविद्यालय में स्‍थापित अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग इस कार्य को आगे बढ़ाने के लिये तत्‍पर है।

अनुवाद में रोजगार की सम्भावनाओं का जिक्र करते हुये प्रो. देवराज ने कहा कि अनुवाद का पाठयक्रम पूरा करने पर राष्‍ट्रीय एवम् अन्तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनुवादक व दुभाषिये के रूप में रोजगार की अपार सम्भावनायें हैं। इससे इतर शैक्षणिक संस्‍थानों में राष्‍ट्रीय, अन्तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनुवादक एवम् दुभाषिये के रूप में, शैक्षणिक संस्‍थानों में अध्‍यापन के क्षेत्र में, राजभाषा अधिकारी के रूप में, बी.पी.ओ. एवम् कॉल सेन्टर में विदेशी भाषा इन्टरप्रेटर के रूप में, पर्यटन उद्योग एवम् होटल प्रबन्धन के क्षेत्र में, अनुवाद प्रौद्योगिकी क्षेत्र में मशीनी अनुवाद और सिनेमेटिक अनुवाद का कार्य, फिल्‍म एवम् टी.वी. में अनुवादक के रूप में, पत्रकारिता में अनुवादक के रूप में रोजगार की असीम सम्भावनायें हैं।

विश्‍वविद्यालय के अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग के बारे में उन्‍होंने कहा कि वैश्वीकरण के इस दौर में राष्‍ट्रीय एवम् अन्तर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर दिन-प्रति दिन अनुवाद की महत्‍ता बढ़ती जा रही है। इसे बहुआयामी एवम् स्‍वायत्‍त अनुशासन के रूप में पहचान मिल चुकी है, इसीलिये विश्‍वविद्यालय में अनुवाद एवम् निर्वचन विद्यापीठ प्रारम्भ हुआ। यह विद्यापीठ समस्‍त विश्‍वविद्यालयों में अद्वितीय है और इसके अन्तर्गत कार्यरत अनुवाद प्रौद्योगिकी विभाग देश का एकमात्र ऐसा विभाग है, जो अनुवाद की तकनीकी, प्रणालीगत और रोजगारपरक संभावनाओं को यथार्थ में परिणत करने के लिये सतत प्रयासरत है। ज्ञात हो कि इस विभाग द्वारा अनुवाद प्रौद्योगिकी में एम.ए., एम.फिल. तथा पीएच. डी. तथा हिन्दी अनुवाद में एक वर्षीय स्‍नातकोत्‍तर डिप्‍लोमा, प्रयोजनमूलक हिन्दी और अनुवाद में एक वर्षीय स्‍नातकोत्‍तर डिप्‍लोमा, निर्वचन में एम वर्षीय स्‍नातकोत्‍तर डिप्‍लोमा आदि पाठयक्रम संचालित किये जा रहे हैं। विभाग के छात्र नेट और जेआरएफ में भी सफल हो रहे हैं। जिससे वे उक्‍त पाठयक्रम पूरा करने पर विभिन्‍न संस्‍थानों में रोजगार पा रहे हैं। सी. डैक, बैंक, आईआईटी, एसएनडीटी, मुम्बई जैसे संस्‍थानों में इस विभाग के छात्र कार्यरत हैं।


भविष्‍य की योजनाओं के बारे में प्रो. देवराज का कहना है कि हम अनुवादकों का डाटाबेस बना रहे हैं जिससे अनुवादकों की एक राष्‍ट्रीय सूची तैयार होगी और अन्‍य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद करने के लिये यह सूची आधार बनेगी। विभाग द्वारा ज्ञान सर्जन केन्द्र बनाने की पहल की जा रही है जिसके द्वारा से विज्ञान, समाज विज्ञान एवम् मानविकी विषयों से जुड़े शोध अनुवाद के माध्‍यम से हिन्दी में उपलब्‍ध हो सकेंगे।

हस्तक्षेप से साभार

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