अनर्थ हो गया है अर्थ की अभ्यर्थना में,
मनुष्य खो गया है मनुष्य की जल्पना में।
केदारनाथ
अग्रवाल की इन पंक्तियों की सच्चाई बतौर अनुवादक भले ही सभी आसानी से समझें या न
समझें, लेकिन समस्या का शुभारंभ तो तभी हो जाता है जब दो भाषाओं का ज्ञाता यह मान
बैठे कि वह बड़ी आसानी से अनुवादक बन सकता है। उसे शब्दकोश के सहारे केवल
एक भाषा में लिखे शब्दों को दूसरी भाषा में उसी अर्थ वाले शब्द से बदलना ही तो है।
लेकिन किसी ने ख़ूब कही कि यह वैसा ही है जैसे दस उँगलियों
का होना हमें पियानो बजाने में माहिर बना दे।
अनुवाद कार्य से जुड़ा हर व्यक्ति जानता
है कि यह कोई सरल-सुगम प्रक्रिया नहीं है। यहाँ तक कि डॉ. ज्ञानवती दरबार को 1960
में लिखे अपने पत्र में भारत के प्रथम राष्ट्रपति, डॉ. राजेंद्र प्रसाद भी कहते
हैं - “Translation
is a difficult art. It is more difficult than original writing in any language…
A perfect translation is that which reproduces the sense of every expression of
the original with due emphasis on spirit, as distinguished from mere words,
which require it.” (अनुवाद एक श्रम-साध्य कला है, जो किसी भी भाषा
में मौलिक लेखन की अपेक्षा अधिक कठिन है... बेहतरीन अनुवाद वह है जो शाब्दिक न
होकर प्रत्येक मूल भावना को, मूल लेख के प्रत्येक कथ्य पर समुचित ज़ोर देते हुए
व्यक्त करे।)
आगे अपने अभिभाषणों के अनुवाद की जटिलता
का ज़िक्र करते हुए वे लिखते हैं -
“…I believe that rather the reproduction of a word for a
word or a phrase for a phrase is not the true test of translation. We know from
our experience how difficult and exciting the work is. …It is not so much the
difficulty of translation as of the ideas contained and conveyed by one writing
to be rendered into another. Have we not experienced all these in the
translation of the address?” (मेरा मानना है कि अनुवाद की
वास्तविक कसौटी शब्दशः या वाक्यशः अनुवाद करना नहीं है। हम अपने अनुभव से जानते
हैं कि यह कार्य कितना कठिन है और रोचक भी।... कठिनाई अनुवाद की नहीं, बल्कि एक
भाषा के विचारों को दूसरी भाषा में अनूदित करने की है। क्या हमने अभिभाषणों का
अनुवाद करते समय इन जटिलताओं का अनुभव नहीं किया है?)
अनुवाद प्रक्रिया की
शुरुआत होती है दिए गए पाठ के विश्लेषण से। यहाँ हम जिन चुनौतियों का सामना
करते हैं, वे हैं मूल विषय से संबंधित ज्ञान का अभाव और लक्ष्य भाषा में उसके
अनुवाद की जटिलता। अगर हम शब्द-संग्रहों का सहारा लें, तो उनमें कई बार एक शब्द के
लिए कई अर्थ मिल जाते हैं। जैसे ‘Talent is one of our
key differentiators’ वाक्य में differentiator के लिए शब्द हैं 'अवकलक', 'विभेदक', 'दूसरों से अलग'। अगर विषय गणित से संबंधित है और अनुवादक 'अवकलक' शब्द को चुन ले, तो यह सही है।
लेकिन अकसर हम ख़ुद को अच्छा लगने वाला या भारी-भरकम
पर्याय लेकर आगे बढ़ जाते हैं, जिससे अर्थ का अनर्थ हो जाता है।
ग़लत अनुवाद के उदाहरणों में इन पर भी नज़र डालें। अंग्रेज़ी में जब कहा जाता है कि पुलिस ने 'इतने round गोलियाँ चलाईं', तो आम तौर पर 'इतने चक्र गोलियाँ चलाईं' लिखा जाता है, जो अटपटा भी है और ग़लत भी। जबकि एक round का मतलब है 'एक गोली'। यही स्थिति 'जजमेंट रिज़र्व' रखने को लेकर है। अकसर कहा या लिखा जाता है -- ‘न्यायाधीश ने अपना निर्णय सुरक्षित रखा’। आजकल ख़बरों में इसका इतना ज़्यादा प्रचलन है कि पहली नज़र में यह हमें सही लग सकता है। लेकिन ज़रा सोचें, जब न्यायाधीश कहता है कि उसने अपना ‘जजमेंट रिज़र्व’ रखा है तो इसका मतलब यह नहीं होता कि फ़ैसला लिखकर कहीं सुरक्षित रख दिया है। दरअसल बात निर्णय बाद में लिखने और सुनाए जाने की है। अगर नेट पर थोड़ी छानबीन कर लें तो स्पष्ट हो जाएगा कि reserved judgments वे हैं जो आम तौर पर जटिल होते हैं और जिन पर विचार-विमर्श के लिए न्यायाधीश को और समय चाहिए।
अनुवाद प्रक्रिया का
दूसरा चरण है मूल पाठ के भाव का लक्ष्य भाषा में अंतरण। यहाँ हमें शब्दकोश,
थिसॉरस और अन्य सहायक सामग्री से मदद मिलती है। लेकिन यहाँ भी समतुल्य शब्द की कमी
चुनौती बनकर उभरती है। कई ऐसे भी उदाहरण आपको शब्द-संग्रहों में मिल जाएँगे जहाँ
दो या तीन शब्दों का एक ही हिंदी पर्याय दिया गया हो। लेकिन जब मिलते-जुलते अर्थ
वाले शब्द एक ही वाक्य में एक साथ आ जाते हैं, तो स्थिति और भी विकट हो जाती है।
उदाहरण के लिए, ‘We must make a distinction between gender and sex’ वाक्य में
sex और gender शब्द पर ग़ौर करें, जहाँ
शब्दकोश में दोनों के लिए 'लिंग' पर्याय दिया गया है। ऐसे में अनुवादक के लिए
ज़रूरी हो जाता है कि वह ‘लिंग’ के
अलावा कोई और पर्याय खोजे, क्योंकि sex जहाँ स्त्री-पुरुष का
भेद स्पष्ट करता है वहीं gender लैंगिक पहचान को।
समृद्ध शब्दावली
अनुवाद में चार चाँद लगाती है, लेकिन कुछ ऐसे भी शब्द हैं जिनका अनुवाद काफ़ी
मुश्किल हो जाता है। जैसे, awkward
के लिए हिंदी में सटीक शब्द नहीं है। हालाँकि 'ख़राब' जैसे शब्द से
काम चला लिया जाता है, लेकिन मूल शब्द सामाजिक परिस्थितियों में शर्मिंदगी और असहजता
के मिश्रित भाव की अभिव्यक्ति है।
इसी प्रसंग में ‘पूर्ण स्वराज’ शब्द को लेकर महात्मा गाँधी की
एक लेखक से बातचीत का यह अंश भी विचारणीय है –
“I cannot give you a proper answer as there is nothing in
English language to give the exact equivalent of Poorna Swaraj.
The original meaning means ‘self-rule’, independence has no such meaning about
it. Swaraj means disciplined rule from within, Poorna means complete. Not
finding any equivalent we have loosely adopted the word complete independence which
everybody understands.”
भाषा को बोझिल होने से बचाने, उसमें
रवानगी लाने के लिए आम शब्दों का प्रयोग कभी सायास तो कभी अनायास हो जाता है। प्रवाहमान भाषा में पुराने
शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं, वे नए रूप और नए अर्थ धारण कर लेते हैं।
अनुवाद की शुद्धता के लिए इन परिवर्तनों का ज्ञान भी आवश्यक है। जैसे, नशे के अर्थ
में पहले प्रयुक्त dope अब cool या
awesome के लिए प्रयुक्त होने लगा है, और salty अब नमकीन नहीं रह गया है बल्कि bitter, angry, agitated बन गया है। अब
कोई आपको sic/sick कहे तो आप ख़ुश हो जाइए, क्योंकि आप बीमार नहीं बल्कि cool या sweet हैं।
नित नए गढ़े जाने वाले
शब्दों की चर्चा के दौरान आजकल हिंदी में भ्रष्टाचार कांड से जुड़ी हर घटना के लिए
प्रयुक्त ‘gate’ शब्द को भी देखें (जैसे
कोलगेट) जो अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर करने वाले वॉटरगेट
प्रकरण के बाद बनने वाला नया प्रत्यय है।
अनुवाद का तीसरा चरण
है पुनःसंरचना। संपादन के इस चरण में
यह तय करना पड़ता है कि किस समतुल्य शब्द का प्रयोग करना है या किस शैली को अपनाना
है। मूल पाठ में रचयिता साधारण शब्द को भी अपने प्रयोग-कौशल से असाधारण, नए और
विशिष्ट अर्थ देने में समर्थ होता है। वह भले ही अज्ञेय की तरह शब्द निरपेक्ष होकर
कहे -
"तुम मुझे शब्द दो, न दो फिर भी मैं कहूँगा", अनुवादक यह नहीं कह सकता। उसे अभिव्यक्ति के लिए शब्दों की – विशिष्ट
शब्दों की आवश्यकता होती है।
सहज अनुवाद के लिए उसके
पास मुहावरेदार अभिव्यक्ति का होना भी ज़रूरी है। It is a big deal में अगर आप 'सौदे'
की बात करेंगे तो बहुत ‘बड़ी बात’ हो जाएगी। भले ही build castles in
the air के लिए आप 'हवाई किले' बना’ लें और 'फूले न समाएँ' (walk
on air) लेकिन अगर आप to clear the air के लिए 'ग़लतफ़हमी या संदेह दूर करने' के बजाय 'हवा साफ़ करने' लगे,
तो आपका ही पत्ता साफ़ हो जाएगा। हाथ-पाँव ठंडे होना, दिल में ठंडक पड़ना, आँखों
की ठंडक तक तो ठीक है, लेकिन क्या cold
feet के लिए 'ठंडा पाँव' और cold
shoulder के लिए 'ठंडा कंधा' लिखना ठीक रहेगा? ठंडे की बात की है,
तो कुछ गरम हो जाए। गूगल महाशय के लिए hot head 'गरम सिर'
है, तो hot products 'गरम सामान'। Hot potato 'विषम या विवादास्पद स्थिति' नहीं, बल्कि 'गरम आलू' है, तो hot
property 'चहेता' नहीं बल्कि 'गरम संपत्ति'। निश्चित रूप
से, Sky is the
limit के लिए ‘आकाश ही सीमा है’ और Issues you are going to champion के
लिए ‘जिन मुद्दों पर आप चैंपियन बनने जा रहे हैं’ जैसे मशीनी अनुवाद मूल
अर्थ के संप्रेषण में ख़लल पैदा करेंगे।
अनुवाद में वाक्य-रचना के संदर्भ में आगत
शब्दों के लिंग निर्णय की समस्या भी उभरती है। 'ई-मेल' को ही ले लें, इसका
स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों रूपों में प्रयोग देखा जा सकता है। अंग्रेज़ी या
अन्य भाषाओं के जो शब्द लंबे समय से हिंदी में प्रयुक्त हो रहे हैं, उनका लिंग
प्रयोग से निर्धारित हो चुका है। लेकिन हिंदी में लिंग-निर्णय का कोई एक सर्वसम्मत
आधार नहीं है। यही कारण है कि अनुवादक को हिंदी के शब्द-भंडार में लिंग संबंधी
अव्यवस्था से भी जूझना पड़ता है।
अनुवाद प्रक्रिया में प्रूफ़रीडिंग
बेहद महत्वपूर्ण चरण है। अपने काम को कई बार संपादित करने के बाद भी उपर्युक्त
कारणों से हम ग़लती सुधारने में चूक जाते हैं और अनुवाद बेमज़ा हो जाता है। शब्दों के
अर्थ का अनर्थ करने वाले कारकों में मशीनी अनुवाद की भूमिका भी शामिल है। इसमें
कोई संदेह नहीं कि ऐसे टूल्स की सहायता से अनुवाद की गति बढ़ती है। लेकिन कंप्यूटर से तुरंत अनुवाद
करने की जल्दबाज़ी में अकसर अर्थ का अनर्थ होते हुए भी हम देखते हैं। हालाँकि छोटे और सरल वाक्यों का अनुवाद
सामान्यत: ठीक-ठाक ही होता
है, लेकिन जब उससे 'क्या
हो जाए दो-दो हाथ?' का अनुवाद करने के लिए कहा जाए, तो क्या
वह What happens two-two hands? से उलट कुछ करेगा? अतः इसके प्रयोग में सावधानी और मानवीय
हस्तक्षेप ज़रूरी है, वरना नज़रें हटीं, दुर्घटना घटी।
कंप्यूटर के शुरुआती दिनों में बहुत सुना
था ‘Garbage in – Garbage out’। जब आप गूगल की
सहायता से "टाँग मत अड़ाओ। पैर पर कुल्हाड़ी मार ली। पाँव फूलने लगे।
चरण-स्पर्श करें।" का अनुवाद करने
बैठें, तो garbage न होने के
बावजूद निकलेगा "Do not put a leg. Killed the axe on the leg. The feet started blooming. Touch step." जैसा garbage
ही।
CAT (Computer-aided Translation) टूल्स में NMT (Neural Machine Translation) के प्रवेश के साथ ही भ्रामक अनुवाद की तादाद भी बढ़ी है। नीचे प्रस्तुत
हैं कुछ रेडीमेड अनुवाद के नमूने :
कुकीज़ आपके द्वारा
दिए गए ऑनलाइन विज्ञापनों की सिलाई को सक्षम बनाती हैं। (Cookies enable the tailoring
of online advertisements served to you.)
लगातार आत्म-मूल्यांकन
और आत्म-प्रतिबिंब हमारे कार्यक्रम का हिस्सा हैं। (Constant self-assessment and self-reflection are part
of our program.)
कमला हैरिस ने अपने
भावी पति से एक अंधे तारीख़ को मुलाक़ात की। (Kamala Harris met her
future husband Doug Emhoff on a blind date.)
Sleep mode (नींद मोड), name-calling (नाम पुकारना), bed time (बिस्तर का समय), foreign
country (विदेशी देश), bottom line (आधार रेखा)
जैसे अनुवाद भी मशीनी अनुवाद की ही देन हैं।
आर्टिफ़िशियल
इंटेलीजेंस (AI) अन्य कार्यों में यद्यपि सहायक हो,
लेकिन भाषा से जुड़े कार्य में इस पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा
सकता।
अनुवाद संपन्न होने के बाद स्वयं उसकी
समीक्षा करना वर्तनी में चूक, ग़लत शब्दों के प्रयोग आदि से बचने का एकमात्र उपाय
है। अपना ही लिखा दुबारा पढ़ते समय अकसर अच्छे व बेहद सटीक शब्द भी सूझते हैं। एक
आलोचक की नज़र से अपने कार्य की समीक्षा करें। आपकी शब्दावली जितनी समृद्ध होगी,
आपके पास अनुवाद में बेहतर शब्दों के प्रयोग के उतने ही विकल्प होंगे। शब्द-चयन पर
ज़्यादा ध्यान दें। न केवल उनके अर्थ पर ग़ौर करें बल्कि देखें कि क्या शब्द-समूह
में वे शब्द कारगर साबित होते हैं। वरना वाक्य में ग़लत शब्द उतना ही अखरता है
जितना मधुर आलाप में गायक का स्वर बिगड़ना।
निष्कर्ष यही कि
समस्याएँ तो हर क्षेत्र में मौजूद होती हैं, लेकिन उन्हें बाधा मानने के बजाय चुनौती
मानकर उनका सकारात्मक उपयोग किया जा सकता है ताकि हमारे कार्य की गुणवत्ता बढ़े।
जिन ग़लतियों का मैंने ज़िक्र किया है, वे मुझसे भी हुई हैं। लेकिन अपनी ग़लतियों
को अनुभव मानकर उनसे कुछ सीखने में ही बुद्धिमानी है।
वैसे ‘क्या करें, क्या न करें’ से जूझते अनुवादक के बारे
में भाषाविद यूजीन अल्बर्ट नाइडा (Eugene A. Nida) की यह
टिप्पणी भी कितनी सटीक है :
"The translator's task is essentially a difficult
and often a thankless one. He is severely criticized if he makes a mistake, but
only faintly praised when he succeeds, for often it is assumed that anyone who
know two languages ought to be able to do as well as the translator who has laboured
to produce a text."
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लेखिका : आर. टी. पुष्पा
आत्म-परिचय
विज्ञान से स्नातक की उपाधि पाने के बाद इच्छा तो थी माइक्रोबायोलॉजी में स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई करने की, लेकिन परिस्थितिवश हिंदी में एमए और फिर पीएचडी की उपाधि हासिल की। कैरियर की शुरुआत प्राध्यापकी से की, लेकिन बाद में विजया बैंक में 20 वर्ष कार्यरत रहने के बाद बतौर वरिष्ठ प्रबंधक (राजभाषा) स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का दामन थामा। पाँच-छह भारतीय भाषाओं पर अच्छी पकड़ और अंग्रेज़ी व हिंदी में सृजनात्मक लेखन ने मीडिया संबंधी अनुसंधान कार्य से जुड़े संस्थान में बतौर भाषा विशेषज्ञ काम करने का मौक़ा दिया। यहाँ पाँच सौ से भी अधिक क्लासिक फ़िल्मों के सबटाइटल से जुड़े अनुवाद कार्य ने आगे का मार्ग प्रशस्त किया और तब से इसी राह पर सफ़र जारी है।